जहाँ आपकी सभाएँ होती हैं, उस जगह को आप चर्च क्यों नहीं कहते?
पहली सदी में किसी इमारत या उपासना की जगह को चर्च नहीं कहा जाता था। बल्कि उपासना के लिए जो लोग इकट्ठा होते थे उन लोगों को “चर्च” या “कलीसिया” कहा जाता था।
इस उदाहरण पर गौर कीजिए: जब प्रेषित पौलुस ने रोम के मसीहियों को चिट्ठी लिखी तब उसने एक जोड़े को अपनी शुभकामनाएँ भेजीं, जिनका नाम अक्विला और प्रिस्किल्ला था। इसके बाद उसने लिखा: “उस कलीसिया (चर्च) को भी नमस्कार जो उनके घर में है।” (रोमियों 16:5, द होली बाइबल हिंदी - ओ.वी.) पौलुस अपनी शुभकामनाएँ किसी इमारत को नहीं भेज रहा था, इसके बजाय उन लोगों को भेज रहा था, जो उस घर में मिलते थे। उन लोगों के लिए उसने कलीसिया या चर्च शब्द का इस्तेमाल किया ना कि उस घर के लिए जिसमें वे मिलते थे। a
इसलिए हम अपनी उपासना की जगह को चर्च कहने के बजाय “राज-घर” कहते हैं।
हमारी मिलने की जगह को “यहोवा के साक्षियों का राज-घर” क्यों कहा जाता है?
ऐसा कहने के कई कारण हैं:
जहाँ हम उपासना के लिए मिलते हैं, वह जगह एक घर की तरह होती है। उसमें एक बड़ा हॉल होता है।
हम वहाँ यहोवा परमेश्वर की उपासना करने के लिए मिलते हैं। वहाँ हम यहोवा के बारे में सीखते हैं। हम सभाओं में हिस्सा लेते हैं और इससे ज़ाहिर करते हैं कि हम यहोवा के साक्षी हैं।—भजन 83:18; यशायाह 43:12.
यीशु यहोवा के राज के बारे में बातें किया करता था। हम राज-घरों में उसी राज के बारे में सीखते हैं।—मत्ती 6:9, 10; 24:14; लूका 4:43.
आपके नज़दीकी राज-घर में आपका स्वागत है। क्यों ना आप खुद ही देख लें कि यहोवा के साक्षियों की सभाएँ कैसे होती हैं।
a ऐसी ही बात हम 1 कुरिंथियों 16:19; कुलुस्सियों 4:15 और फिलेमोन 2 में पढ़ते हैं।