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पिछले साल की खास घटनाएँ

2016 की कानूनी लड़ाइयाँ

2016 की कानूनी लड़ाइयाँ

हमारे मसीही भाई-बहन कानूनी लड़ाइयाँ लड़ते हुए और मुश्किल हालात का सामना करते हुए भी यहोवा परमेश्वर के वफादार रहे हैं। उनके अनुभवों से हमारा इरादा पक्का होता है कि हम अपने विश्वास में मज़बूत बने रहें और भरोसा रखें कि “यहोवा अपने वफादार जन का खास खयाल रखेगा।”—भज. 4:3.

अर्जेंटीना | बच्चों को अपने धर्म की शिक्षा देने का अधिकार

रूत की परवरिश साक्षी परिवार में हुई थी, मगर जब वह जवान थी तो सच्चाई में ठंडी पड़ गयी। बाद में वह एक आदमी के साथ रहने लगी और कुछ समय बाद उसने एक बच्ची को जन्म दिया। एक दिन रूत ने ला प्लाटा शहर में देखा कि यहोवा के साक्षी टेबल पर साहित्य रखकर लोगों को गवाही दे रहे हैं। रूत को याद आया कि कैसे वह भी मसीही परिवार में पली-बढ़ी थी। उसने फैसला किया कि वह फिर से मंडली के साथ संगति करेगी। वह अपनी नन्ही-सी बच्ची को बाइबल सिखाने लगी। मगर बच्ची के पिता ने रूत का विरोध किया और परिवार अदालत में एक मुकदमा दायर किया ताकि रूत उनकी बेटी को न बाइबल सिखाए और न ही मंडली की सभाओं में ले जाए।

अदालत में रूत के वकील ने दलील दी कि माँ और पिता, दोनों के पास बच्चे को धर्म की शिक्षा देने का अधिकार है और अदालत तब तक उनके इस अधिकार पर रोक नहीं लगा सकती जब तक इस बात के सबूत न हों कि उस शिक्षा से बच्चे को कुछ नुकसान हो रहा है। अदालत ने फैसला सुनाया कि उस माता-पिता को अपनी बच्ची के इस अधिकार का आदर करना चाहिए कि वह जिस धर्म को चाहे मान सकती है। मगर बच्ची सिर्फ चार साल की थी और धर्म के मामले में खुद फैसले नहीं कर सकती थी। इसलिए रूत ने अपील अदालत से अपील की कि यह फैसला और अच्छी तरह समझाया जाए। अपील अदालत ने फैसला सुनाया कि माँ और पिता, दोनों को उसे धर्म की शिक्षा देने का बराबर अधिकार है।

रूत की बेटी हर रात बाइबल पढ़ती है और अब अपनी माँ के साथ सभाओं में जाती है। वह ब्यूनस आयर्स जाकर बेथेल देखने का बेसब्री से इंतज़ार कर रही है।

अज़रबाइजान | अपने धर्म के बारे में दूसरों को बताने का अधिकार

प्रेषित पौलुस ने कहा कि सच्ची मसीही मंडली में “अगर एक अंग को तकलीफ होती है, तो बाकी सभी अंग उसके साथ तकलीफ उठाते हैं।” (1 कुरिं. 12:26) इस बात की सच्चाई हाल में देखी गयी। जब अज़रबाइजान की दो बहनें ईरीना ज़ाकारचेंको और वालीदा जाब्राइलोवा तकलीफों से गुज़रीं तो पूरी दुनिया में रहनेवाले यहोवा के साक्षियों ने उनकी तकलीफ महसूस की। फरवरी 2015 में अधिकारियों ने इन दोनों बहनों पर इलज़ाम लगाया कि वे जो धार्मिक काम कर रही हैं वह गैर-कानूनी है। जज ने उनके मुकदमे की सुनवाई करने से पहले उन्हें जेल में डाल दिया और बार-बार उनका मुकदमा मुल्तवी किए जाने की वजह से उन्हें करीब एक साल जेल में रहना पड़ा। वहाँ उनके साथ बुरा सलूक किया गया और उनके अधिकार छीन लिए गए।

अज़रबाइजान: वालीदा जाब्राइलोवा और ईरीना ज़ाकारचेंको

आखिरकार जनवरी 2016 में जब बहनों के मुकदमे की सुनवाई हुई तो जज ने उन्हें दोषी पाया और उन पर जुरमाना लगाया। मगर फिर उसने जुरमाना रद्द कर दिया और उन्हें घर जाने दिया क्योंकि सुनवाई से पहले वे जेल में रह चुकी थीं। जब बहनों ने बाकू की अपील अदालत से अपील की कि उन पर से अपराधी होने का इलज़ाम हटा दिया जाए तो अदालत ने उनकी अपील खारिज कर दी। तब बहनों ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की। उन्होंने संयुक्‍त राष्ट्र मानवाधिकार समिति के यहाँ भी शिकायत दर्ज़ की कि उनके साथ बुरा सलूक किया गया है और अपने धर्म के बारे में दूसरों को बताने का अधिकार उनसे छीन लिया गया है।

फिलहाल बहनें सदमे से उभर रही हैं। वे दिल से एहसानमंद हैं कि भाई-बहनों ने दिन-रात उनके लिए प्रार्थना की और उनकी फिक्र की। बहन जाब्राइलोवा ने शासी निकाय को लिखा: “आपकी प्रार्थनाओं की वजह से हमें तकलीफें सहने की ताकत मिली। मैंने वाकई ऐसा महसूस किया है। आप लोगों ने, यहोवा ने और पूरी दुनिया के भाई-बहनों ने जिस तरह हमसे प्यार किया और हमारा खयाल रखा, उसे मैं कभी नहीं भूलूँगी।”

एरिट्रिया | उनके विश्वास की वजह से उन्हें जेल में डाला गया

जुलाई 2016 तक एरिट्रिया की सरकार ने 55 यहोवा के साक्षियों को उनके विश्वास की वजह से जेल में डाल दिया। तीन भाई, पौलोस ईयासू, ईसैक मोगोस और नेगेडे टेक्लेमारियाम सितंबर 1994 से जेल में हैं। नौ और भाई करीब 10 साल से जेल में हैं।

अकसर ऐसा होता था कि साक्षियों को गिरफ्तार तो कर लिया जाता था, मगर उन पर कानूनन कोई मुकदमा नहीं चलाया जाता था। इसलिए उन्हें अपनी सफाई पेश करने का कोई मौका नहीं मिलता था। लेकिन जनवरी 2016 में पहली बार ऐसा हुआ कि अदालत में साक्षियों के खिलाफ एक मुकदमे की सुनवाई हुई। उन साक्षियों को अप्रैल 2014 में अस्मारा शहर में स्मारक के वक्‍त गिरफ्तार किया गया था। अदालत ने ज़्यादातर भाई-बहनों को एक ऐसी सभा में हाज़िर होने का दोषी पाया जो अधिकारियों के मुताबिक गैर-कानूनी थी। उन पर जुरमाना लगाया गया और फिर उन्हें छोड़ दिया गया। मगर उनमें से एक बहन सरोन गेब्रू ने अपने ज़मीर की वजह से जुरमाना देने से इनकार कर दिया। इसलिए उसे छ: महीने की जेल हो गयी। बहन गेब्रू से हफ्ते में एक बार लोग जाकर मिल सकते थे। बहन ने बताया कि उसके साथ अच्छा सलूक किया गया। बहन गेब्रू और जेल में कैद 54 और साक्षी इस बात के लिए एहसानमंद हैं कि हम उन सबके लिए प्रार्थना करते हैं और इस तरह ‘जो कैद में हैं उन्हें याद रखते हैं मानो हम खुद भी उनके साथ कैद में हैं।’—इब्रा. 13:3.

जर्मनी | अपना धर्म मानने की आज़ादी—कानूनी मान्यता

जर्मनी के उत्तर-पश्‍चिमी राज्य ब्रेमेन की सरकार ने आखिरकार 21 दिसंबर, 2015 को यहोवा के साक्षियों के धार्मिक संघ को और भी ऊँचा कानूनी दर्जा दिया। इस तरह चार साल से जर्मनी की अदालतों में चल रही कानूनी लड़ाई खत्म हुई। बर्लिन के उच्च प्रशासनिक अदालत के एक फैसले के बाद, जर्मनी के 16 में से ज़्यादातर राज्यों ने यहोवा के साक्षियों को एक कानूनी दर्जा दिया जिसे सार्वजनिक कानूनी दर्जा कहा जाता है। मगर ब्रेमेन के अधिकारियों ने अपने राज्य के साक्षियों को यह दर्जा देने से इनकार कर दिया। इसकी एक बड़ी वजह यह थी कि विरोधियों ने साक्षियों पर झूठे इलज़ाम लगाकर सबमें ये बातें फैला दी थीं।

सन्‌ 2015 में जर्मनी की संघीय संवैधानिक अदालत इस नतीजे पर पहुँची कि ब्रेमेन की सरकार ने साक्षियों को सार्वजनिक कानूनी दर्जा न देकर उनका वह अधिकार छीन लिया है जो संविधान ने उन्हें दिया है। इस फैसले से पुख्ता हो गया कि संविधान अपना धर्म मानने की जो आज़ादी देता है उसके तहत ब्रेमेन के साक्षी अपने धर्म के काम कर सकते हैं। ब्रेमेन की मंडलियों को जर्मनी के बड़े-बड़े धर्मों की तरह कर से छूट पाने और बाकी सुविधाएँ पाने का अधिकार है।

किर्गिस्तान | अपने धर्म के बारे में दूसरों को बताने का अधिकार

मार्च 2013 में किर्गिस्तान के ओश शहर के अधिकारियों ने ओकसाना कारीयाकीना और उसकी माँ नदेज़दा सर्जिएंको पर अपराधी होने का झूठा इलज़ाम लगाया। सरकारी वकील ने इन दोनों साक्षियों पर आरोप लगाया कि वे अपने पड़ोसियों को बाइबल की शिक्षाएँ बताते वक्‍त उन्हें ठग रही थीं। जज ने कहा कि जब तक उनके मुकदमे की सुनवाई नहीं होती उन्हें घर में नज़रबंद रखा जाए। अक्टूबर 2014 में निचली अदालत ने पाया कि उनके खिलाफ पेश किए गए सबूत झूठे हैं, उनके खिलाफ की गयी कार्रवाई कानून के मुताबिक नहीं थी और बहनें दोषी नहीं हैं। अक्टूबर 2015 में अपील अदालत ने भी यही फैसला सुनाया।

मगर ओश के सरकारी वकील ने फिर से अपील की। इस बार उसने किर्गिस्तान के सुप्रीम कोर्ट से अपील की। उस अदालत ने बहनों को बरी करने का फैसला रद्द कर दिया और नए सिरे से उन पर मुकदमा करने का आदेश दिया। अप्रैल 2016 में हुई सुनवाई में बहनों के वकीलों ने प्रस्ताव रखा कि मुकदमा रद्द कर दिया जाए क्योंकि कानून के मुताबिक कार्रवाई करने का सीमित समय खत्म हो चुका था। जज को मजबूरन वह मुकदमा रद्द करना पड़ा और इस तरह बहनों के खिलाफ चल रही अदालती कार्रवाई खत्म हो गयी।

इस पूरे मुश्किल दौर में बहनों ने हिम्मत नहीं हारी। बहन सर्जिएंको ने कहा, “जब लोगों के साथ बुरा सलूक किया जाता है तो वे अकसर कड़वाहट से भर जाते हैं। मगर मैंने यहोवा का प्यार महसूस किया। उसने भाई-बहनों के ज़रिए हमारा खयाल रखा और हमारी मदद की। हमें कभी नहीं लगा कि हम अकेले हैं।” बहनों ने खुद अनुभव किया कि यहोवा हमेशा अपना यह वादा पूरा करता है: “डर मत क्योंकि मैं . . . नेकी के दाएँ हाथ से तुझे सँभाले रहूँगा।”—यशा. 41:10.

किर्गिस्तान | अपना धर्म मानने की आज़ादी—कानूनी मान्यता

9 अगस्त, 2015 को किर्गिस्तान के ओश में जब एक मँडली की सभा चल रही थी तो 10 पुलिस अधिकारी अचानक वहाँ घुस आए। उन्होंने हुक्म दिया कि यह सभा फौरन बंद की जाए क्योंकि यह गैर-कानूनी है। उन्होंने धमकी भी दी कि वहाँ हाज़िर 40 से ज़्यादा लोगों को वे गोली मार देंगे। पुलिस 10 भाइयों को थाने ले गयी। वहाँ उन्होंने 9 भाइयों के साथ बुरा सलूक किया, उन्हें पीटा और फिर छोड़ दिया। दो दिन बाद पुलिस ने नूरलान ऊसूबेअव को गिरफ्तार कर लिया। वह उन भाइयों में से एक था जिन्हें बहुत बुरी तरह पीटा गया था। उस पर इलज़ाम लगाया गया कि वह सभा चलाकर ऐसा धार्मिक काम कर रहा है जो गैर-कानूनी है।

जब ओश की अदालत में भाई ऊसूबेअव के मुकदमे की सुनवाई हुई तो जज ने पाया कि उस पर लगाए गए इलज़ामों का कोई सबूत नहीं है, इसलिए उसने मुकदमा रद्द कर दिया। तब सरकारी वकील ने ओश की प्रांतीय अदालत से अपील की। मगर उस अदालत ने अपील खारिज कर दी और इससे यह बात पक्की हो गयी कि भाई ऊसूबेअव गैर-कानूनी धार्मिक काम करने का दोषी नहीं हो सकता, क्योंकि किर्गिस्तान में यहोवा के साक्षियों को कानूनी तौर पर रजिस्टर किया गया है।

मगर सरकारी वकील ने हार नहीं मानी। उसने किर्गिस्तान के सुप्रीम कोर्ट से अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2016 में भाई ऊसूबेअव का मुकदमा रद्द कर दिया, जिससे उसे राहत मिली। इस अदालत ने भी वही फैसला सुनाया जो निचली और अपील अदालतों ने सुनाया था और एक बार फिर पुख्ता कर दिया कि किर्गिस्तान में यहोवा के साक्षियों को अपनी धार्मिक सभाएँ रखने का अधिकार है। भाइयों ने ओश के पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अदालत में अलग से एक मुकदमा दायर किया था। उसकी सुनवाई अभी बाकी है।

रूस | अपना धर्म मानने की आज़ादी

रूस में मानव अधिकार के विशेषज्ञों ने यहोवा के साक्षियों पर होनेवाले हमलों के खिलाफ आवाज़ उठायी है, फिर भी रूसी सरकार साक्षियों पर लगातार हमला कर रही है और उनके धार्मिक काम रोकने की कोशिश कर रही है। अब तक अधिकारियों ने हमारे 88 प्रकाशनों को “कट्टरपंथी” करार दिया है और यहोवा के साक्षियों की आधिकारिक वेबसाइट jw.org पर रोक लगा दी है। सन्‌ 2015 में कस्टम अधिकारियों ने दूसरे देश से रूस में पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद लाने पर रोक लगा दी। वाइबोर्ग की एक अदालत इस बारे में जाँच कर रही है कि नए ज़माने की भाषा की इस बाइबल को “कट्टरपंथी” करार दिया जाए या नहीं। मार्च 2016 में मुख्य सरकारी वकील के ऑफिस ने सेंट पीटर्सबर्ग के बाहर सोलनेचनोया में यहोवा के साक्षियों के केंद्र को बंद करने की धमकी दी। दफ्तर ने दावे के साथ कहा कि उस केंद्र में “कट्टरपंथी गतिविधियाँ” हो रही हैं।

हालाँकि सरकार ने यहोवा के साक्षियों का कड़ा विरोध किया है, फिर भी कुछ अच्छी घटनाएँ भी घटी हैं। अक्टूबर 2015 में टाइमोन में, जो मॉस्को से करीब 2,100 किलोमीटर दूर पूरब में है, एक सरकारी वकील ने स्थानीय धार्मिक संगठन (एल.आर.ओ.) को बंद कराने के लिए एक दावा दायर किया। हालाँकि यह साफ था कि पुलिस ने साक्षियों के खिलाफ झूठे सबूत पेश किए थे, फिर भी टाइमोन की प्रांतीय अदालत ने वहाँ के एल.आर.ओ. को दोषी पाया। मगर 15 अप्रैल, 2016 को रूसी संघ के सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को उलट दिया। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि “टाइमोन शहर में यहोवा के साक्षियों के एल.आर.ओ. को बंद करने का कोई आधार नहीं है।” जब अध्यक्षता करनेवाले जज ने यह फैसला पढ़कर सुनाया तो अदालत में मौजूद 60 भाई-बहन खड़े होकर खुशी से तालियाँ बजाने लगे।

रूस में यहोवा के लोगों ने ठान लिया है कि वे उसकी उपासना करते रहेंगे, फिर चाहे उनके ‘खिलाफ कोई भी हथियार उठे।’—यशा. 54:17.

रवांडा | धार्मिक भेदभाव के बिना शिक्षा पाने का अधिकार

हाल के सालों में रवांडा में साक्षियों के बच्चों को स्कूल से निकाल दिया गया क्योंकि उन्होंने स्कूल में धर्म या देश-भक्‍ति से जुड़े कामों में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था। सरकार ने इस समस्या को सुलझाने के लिए 14 दिसंबर, 2015 को एक आदेश जारी किया ताकि स्कूल में बच्चों के साथ धर्म को लेकर भेदभाव न किया जाए। इस आदेश के मुताबिक विद्यार्थियों को अपना धर्म मानने की आज़ादी है और स्कूलों से कहा गया कि वे इसका आदर करें।

9 जून, 2016 को अँग्रेज़ी में हमारी वेबसाइट jw.org पर “न्यूज़रूम” भाग में इस शीर्षक पर एक लेख प्रकाशित किया गया: “स्कूलों में धर्म को लेकर होनेवाला भेदभाव मिटाने के लिए रवांडा कदम उठाता है।” दिलचस्पी की बात है कि इसी लेख को रवांडा के एक मशहूर ऑनलाइन अखबार ने भी प्रकाशित किया। जल्द ही वेबसाइट पर यह अखबार 3,000 बार पढ़ा गया और कई लोगों ने सरकार की तारीफ की। रवांडा के साक्षी उस आदेश के लिए एहसानमंद हैं क्योंकि अब उनके बच्चे धार्मिक भेदभाव के बिना शिक्षा पा सकते हैं।

रवांडा: उन्हें स्कूल में फिर से ले लिया गया

दक्षिण कोरिया | ज़मीर के मुताबिक फैसला करने की आज़ादी—सेना में भरती होने से इनकार

दक्षिण कोरिया में 60 से भी ज़्यादा सालों से यहोवा के साक्षियों को एक समस्या का सामना करना पड़ा है। जिन भाइयों की उम्र 19 से 35 के बीच है उनसे सेना में भरती होने की माँग की जाती है। दक्षिण कोरिया की सरकार नहीं मानती कि एक व्यक्‍ति के पास यह अधिकार है कि वह अपने ज़मीर की वजह से सेना में भरती होने से इनकार कर सकता है। सरकार ने ऐसा कोई इंतज़ाम भी नहीं किया है कि सेना में भरती होने के बजाय वे कोई और सेवा कर सकते हैं। कई साक्षी परिवारों में ऐसा हुआ है कि उनकी कुछ पीढ़ियों को जेल जाना पड़ा है, जैसे एक भाई को, फिर उसके बेटे को और उसके पोते को।

संवैधानिक अदालत ने दो बार फैसला सुनाया कि सैन्य सेवा कानून, संविधान के मुताबिक है, फिर भी निचली अदालतों और उस कानून के मुताबिक सज़ा पा चुके आदमियों ने एक बार फिर संवैधानिक अदालत में यह मसला उठाया। इसलिए 9 जुलाई, 2015 को अदालत ने उन लोगों की दलीलें सुनीं जिन्होंने अपने ज़मीर की वजह से सेना में भरती होने से इनकार किया था। उनमें से एक था भाई मिनवान किम जो 18 महीने इसलिए जेल में रहा था क्योंकि उसने अपने ज़मीर की वजह से सेना में प्रशिक्षण नहीं लिया। वह कहता है, “मैं जेल की सज़ा काट चुका हूँ। मगर मैं उम्मीद करता हूँ कि दूसरे कई लोगों को, जो ज़मीर की वजह से सेना में भरती नहीं होते, सज़ा नहीं मिलेगी। अगर उन्हें कोई और सेवा करने की इजाज़त दी जाए, तो इससे समाज का भला होगा।” संवैधानिक अदालत बहुत जल्द अपना फैसला सुनाएगी।

तुर्कमेनिस्तान | बाहराम हेमदमोव

53 साल का भाई हेमदमोव शादीशुदा है और उसके चार बेटे हैं। वह सच्चाई में बहुत जोशीला है और समाज में उसकी काफी इज़्ज़त है। मई 2015 में एक अदालत ने उसे सज़ा सुनायी कि वह चार साल के लिए जेल में कड़ी मज़दूरी करे क्योंकि उसने अपने घर पर एक धार्मिक सभा रखी जो उनके मुताबिक गैर-कानूनी थी। उसे सेदी कसबे में मज़दूरों के एक शिविर में डाल दिया गया जो कैदियों के साथ बहुत बुरा सलूक करने के लिए बदनाम है। वहाँ अधिकारी उससे बार-बार पूछताछ करते और बेरहमी से पीटते हैं। फिर भी वह यहोवा का वफादार रहा है और उसका परिवार भी वफादार है। भाई हेमदमोव की पत्नी गुलज़िरा कभी-कभी उससे मिल पाती है और उसका हौसला बढ़ाती है।

जैसे हमने देखा, यहोवा के लोग ऐसे वक्‍त में भी उसके वफादार रहते हैं जब उन पर परीक्षाएँ आती हैं। यह देखकर हम उनके लिए प्रार्थना करते हैं। साथ ही, हमारा इरादा मज़बूत होता है कि हम भी यहोवा के वफादार रहें और भजन 37:28 में दर्ज़ इस वादे पर भरोसा रखें: “वह अपने वफादार सेवकों को कभी नहीं त्यागेगा।”