क्या इसे रचा गया था?
इंसानों के शरीर में घाव भरने की काबिलीयत
हमारे शरीर की यह खासियत है कि चोट लगने पर हमारे ज़ख्म खुद-ब-खुद भर जाते हैं। अगर ऐसा नहीं होता, तो छोटी-सी चोट लगने से ही हमारी मौत हो जाती। जैसे ही हमें चोट लगती है, तभी से घाव भरना शुरू हो जाते हैं।
गौर कीजिए: हमारे घाव इसलिए भर पाते हैं, क्योंकि हमारे शरीर में कोशिकाएँ बहुत-से पेचीदा काम करती हैं, जैसे:
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घाव के आस-पास खून में जो प्लेटलेट होते हैं, वे जम जाते हैं। इससे उस नली से खून बहना बंद हो जाता है, जहाँ से वह कटी थी।
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जहाँ चोट लगी है, वहाँ सूजन आ जाती है। इस वजह से घाव फैलता नहीं और साफ रहता है।
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कुछ ही दिनों में घाव भरने लगता है और खून की जो नलियाँ कट गयी थीं, वे ठीक होने लगती हैं।
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इसके बाद घाव की जगह पर नयी त्वचा आ जाती है और घाव पूरी तरह ठीक हो जाता है।
इंसानों के शरीर में जिस तरह खून जम जाता है, उसकी नकल करके वैज्ञानिक ऐसे प्लास्टिक बना रहे हैं, जिनमें यह काबिलीयत हो कि कट जाने या छेद होने पर वे खुद-ब-खुद ठीक हो जाएँ। इनमें एक कतार में छोटी-छोटी नलियाँ होती हैं, जिनमें दो तरह के रसायन होते हैं। जब प्लास्टिक कट जाता है या उसमें छेद होता है, तो ये रसायन नलियों से बहने लगते हैं, ठीक जैसे शरीर में चोट लगने पर खून बहने लगता है। जब ये दो रसायन आपस में मिल जाते हैं, तो एक तरह का जैल बन जाता है, जो दरार या छेद पर फैल जाता है और उसे भर देता है। जब ये जैल सख्त हो जाता है, तो प्लास्टिक का वह हिस्सा जो कट गया था, पहले जैसा मज़बूत हो जाता है। एक जानकार कहता है कि अभी वे जिस तरह के प्लास्टिक बनाने की कोशिश कर रहे हैं, वह दरअसल हमारे शरीर में घाव के खुद-ब-खुद भर जाने की काबिलीयत की नकल है।
आपको क्या लगता है? क्या हमारे शरीर में घाव भर जाने की काबिलीयत अपने-आप आ गयी? या फिर हमें इस तरह रचा गया था? ▪ (g15-E 12)