यहोवा हमारा निवासस्थान है
“हे प्रभु, तू पीढ़ी से पीढ़ी तक हमारा निवासस्थान बना हुआ है।”—भज. 90:1; अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन।
1, 2. परमेश्वर के सेवक इस दुनिया में कैसा महसूस करते हैं? और किस तरह उनका एक घर है?
क्या आप इस दुनिया में खुद को अजनबी महसूस करते हैं? अगर हाँ, तो आप अकेले नहीं हैं। पुराने ज़माने से ही यहोवा से सच्चा प्यार करनेवालों ने इस दुनिया में खुद को अजनबी महसूस किया है। उदाहरण के लिए, कनान देश में एक जगह से दूसरी जगह जानेवाले परमेश्वर के वफादार उपासकों ने “सब लोगों के सामने यह ऐलान किया कि वे उस देश में अजनबी और मुसाफिर हैं।”—इब्रा. 11:13.
2 उसी तरह, मसीह के अभिषिक्त जन भी खुद को “परदेसी और प्रवासी” जैसा महसूस करते हैं, क्योंकि उनकी “नागरिकता स्वर्ग की है।” (फिलि. 3:20; 1 पत. 2:11) मसीह की “दूसरी भेड़ें” भी इस ‘दुनिया की नहीं हैं, ठीक जैसे यीशु दुनिया का नहीं था।’ (यूह. 10:16; 17:16) फिर भी, दुनिया में परदेसी होते हुए भी उनका एक घर है। भले ही हम इस घर को अपनी आँखों से नहीं देख सकते, लेकिन यह ऐसा घर है जहाँ हमें बहुत प्यार और सबसे ज़्यादा सुरक्षा मिलती है। यह घर क्या है? मूसा ने लिखा: “हे प्रभु, तू पीढ़ी से पीढ़ी तक हमारा निवासस्थान बना हुआ है।” * (भज. 90:1; अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन) जी हाँ, यहोवा अपने वफादार सेवकों के लिए “निवासस्थान” या घर है। क्या आप जानते हैं कि पुराने ज़माने में यहोवा अपने सेवकों के लिए कैसे एक निवासस्थान था? आज वह किस तरह अपने लोगों के लिए निवासस्थान है? और कैसे भविष्य में सिर्फ वही अपने सेवकों के लिए एक सुरक्षित निवासस्थान साबित होगा?
पुराने ज़माने में यहोवा अपने सेवकों के लिए एक “निवासस्थान” था
3. भजन 90:1 में यहोवा की तुलना किससे की गयी है? और क्यों?
3 बाइबल में कभी-कभी यहोवा की तुलना जानी-पहचानी चीज़ों से की गयी है, ताकि हम उसकी शख्सियत को अच्छी तरह समझ सकें। उदाहरण के लिए, भजन 90:1 यहोवा की तुलना एक “निवासस्थान” या घर से करता है। जब हम किसी घर के बारे में सोचते हैं, तो हमारे मन में एक ऐसी जगह आती है जहाँ प्यार, शांति और सुरक्षा हो। यहोवा की तुलना एक घर से क्यों की गयी है? बाइबल कहती है कि यहोवा प्यार है। (1 यूह. 4:8) बाइबल यह भी कहती है कि वह शांति का परमेश्वर है और अपने सेवकों को सुरक्षित रखता है। (भज. 4:8) आइए हम गौर करें कि यहोवा कैसे अपने वफादार सेवक अब्राहम, इसहाक और याकूब के लिए एक निवासस्थान साबित हुआ।
4, 5. यहोवा ने किस तरह अब्राहम की हिफाज़त की?
4 ज़रा सोचिए कि अब्राहम को तब कैसा लगा होगा, जब यहोवा ने उससे कहा: “अपने देश, और अपनी जन्मभूमि, और अपने पिता के घर को छोड़कर उस देश में चला जा जो मैं तुझे दिखाऊंगा।” लेकिन यहोवा ने आगे जो कहा, उससे बेशक अब्राहम की सारी चिंताएँ दूर हो गयी होंगी: “मैं तुझ से एक बड़ी जाति बनाऊंगा, और तुझे आशीष दूंगा, और तेरा नाम बड़ा करूंगा . . . और जो तुझे आशीर्वाद दें, उन्हें मैं आशीष दूंगा; और जो तुझे कोसे, उसे मैं शाप दूंगा।”—उत्प. 12:1-3.
5 यहोवा ने वादा किया कि वह खुद अब्राहम और उसके वंशजों का निवासस्थान बनेगा यानी उन्हें आशीष देगा और उनकी हिफाज़त करेगा। और उसने बिलकुल ऐसा ही किया। (उत्प. 26:1-6) उदाहरण के लिए, उसने मिस्र के राजा फिरौन और गरार के राजा अबीमेलेक को अब्राहम की हत्या करने और उसकी पत्नी को अपनी पत्नी बनाने से रोका। उसने इसहाक और रिबका की भी इसी तरह हिफाज़त की। (उत्प. 12:14-20; 20:1-14; 26:6-11) बाइबल कहती है कि “उस ने किसी मनुष्य को उन पर अन्धेर करने न दिया; और वह राजाओं को उनके निमित्त यह धमकी देता था, कि मेरे अभिषिक्तों को मत छुओ, और न मेरे नबियों की हानि करो।”—भज. 105:14, 15.
6. इसहाक ने याकूब से क्या कहा? याकूब को कैसा लगा होगा?
6 उन नबियों में अब्राहम का पोता, याकूब भी शामिल था। जब याकूब का अपने लिए एक पत्नी चुनने का वक्त आया, तो उसके पिता इसहाक ने उससे कहा: “तू किसी कनानी लड़की को न ब्याह लेना। पद्दनराम में अपने नाना बतूएल के घर जाकर वहां अपने मामा लाबान की एक बेटी को ब्याह लेना।” (उत्प. 28:1, 2) याकूब ने ठीक ऐसा ही किया। उसने कनान में अपने परिवार को छोड़, शायद अकेले हज़ारों किलोमीटर का सफर तय किया और हारान गया। (उत्प. 28:10) हो सकता है रास्ते में उसके मन में तरह-तरह के सवाल आए हों, ‘मुझे कब तक अपने परिवार से दूर रहना होगा? क्या मेरा मामा मुझे देखकर खुश होगा? क्या मुझे ऐसी पत्नी मिलेगी जो यहोवा से प्यार करती हो?’ लेकिन बेर्शेबा से 100 किलोमीटर दूर लूज नाम की जगह में कुछ ऐसी घटना घटी जिससे याकूब की सारी चिंताएँ दूर हो गयीं। आखिर लूज में क्या हुआ?
7. एक सपने में परमेश्वर ने किस तरह याकूब की हिम्मत बँधायी?
7 लूज में यहोवा एक सपने में याकूब को दिखायी दिया और उसने याकूब से कहा: “मैं तेरे संग रहूंगा, और जहां कहीं तू जाए वहां तेरी रक्षा करूंगा, और तुझे इस देश में लौटा ले आऊंगा: मैं अपने कहे हुए को जब तक पूरा न कर लूं तब तक तुझ को न छोड़ूंगा।” (उत्प. 28:15) यहोवा के इन प्यार-भरे शब्दों से याकूब को कितनी हिम्मत मिली होगी! इसके बाद, याकूब ज़रूर यह देखने के लिए बेताब रहा होगा कि यहोवा अपना वादा कैसे पूरा करेगा। अगर किसी दूसरे देश में सेवा करने के लिए आपने भी अपना घर छोड़ा है, तो शायद आपको भी याकूब की तरह चिंता हुई होगी। लेकिन आपने बेशक यह महसूस किया होगा कि यहोवा ने कई तरीकों से आपकी देखभाल की।
8, 9. किन तरीकों से यहोवा याकूब के लिए एक “निवासस्थान” साबित हुआ? अब्राहम, इसहाक और याकूब के उदाहरण से हम यहोवा के बारे में क्या सीखते हैं?
8 जब याकूब हारान पहुँचा, तो उसके मामा लाबान ने खुशी-खुशी उसका स्वागत किया और आगे चलकर लिआ और राहेल को उसकी पत्नियाँ होने के लिए दे दिया। मगर कुछ समय बाद, लाबान याकूब के साथ ज़्यादती करने लगा और उसने उसकी मज़दूरी दस बार बदली। (उत्प. 31:41, 42) याकूब ने यह सब सहा क्योंकि उसे भरोसा था कि यहोवा उसे सँभालेगा। नतीजा, यहोवा ने याकूब को आशीष दी। जब उसने याकूब को वापस कनान लौटने के लिए कहा, तब तक याकूब के पास “बहुत सी भेड़-बकरियां, सेवक-सेविकाएं, ऊंट और गदहे हो गए।” (उत्प. 30:43, अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन) अपनी एहसानमंदी ज़ाहिर करते हुए याकूब ने यहोवा से प्रार्थना की: “मैं तो तेरी सब करुणा और सब सच्चाई के उन कामों के योग्य नहीं हूं जो तू ने अपने दास पर प्रकट किए क्योंकि मैं तो केवल अपनी लाठी लेकर यरदन के पार गया था और अब तो मेरे पास दो दल हो गए हैं।”—उत्प. 32:10, अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन।
9 ये सारे उदाहरण दिखाते हैं कि मूसा के कहे ये शब्द कितने सच थे: “हे प्रभु, तू पीढ़ी से पीढ़ी तक हमारा निवासस्थान बना हुआ है।” (भज. 90:1, अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन) यहोवा अब भी नहीं बदला है। वह आज भी अपने वफादार सेवकों से प्यार करता है, और उनकी देखभाल और हिफाज़त करता है। (याकू. 1:17) आइए देखें कैसे।
यहोवा आज भी हमारा “निवासस्थान” है
10. हम कैसे यकीन रख सकते हैं कि यहोवा अपने सेवकों के लिए निवासस्थान है?
10 इस हालात के बारे में सोचिए: आप अदालत में हैं और एक अपराधी के खिलाफ गवाही दे रहे हैं। वह कोई मामूली अपराधी नहीं बल्कि एक ऐसे आपराधिक संगठन का सरदार है, जिसका दबदबा दुनिया-भर में है। वह अपराधी न सिर्फ शातिर और ताकतवर है, बल्कि एक निर्दयी हत्यारा और झूठा भी है। ऐसे में, कार्रवाई खत्म हो जाने के बाद जब आप अदालत से निकलते हैं, तो आप कैसा महसूस करेंगे? क्या आप सुरक्षित महसूस करेंगे? हरगिज़ नहीं। आप ज़रूर अपने लिए सुरक्षा माँगेंगे। उसी तरह, यहोवा के सेवकों के तौर पर हम भी यहोवा के सबसे बड़े दुश्मन शैतान के खिलाफ गवाही दे रहे हैं। (प्रकाशितवाक्य 12:17 पढ़िए।) शैतान, परमेश्वर के लोगों को रोकने की हर मुमकिन कोशिश कर रहा है। मगर क्या वह कामयाब हुआ है? नहीं। उलटा हम दुनिया के और भी ज़्यादा लोगों को प्रचार करने में लगे हुए हैं। यह कैसे मुमकिन हुआ है? इसकी सिर्फ एक ही वजह है: यहोवा हमारा “निवासस्थान” है। वह इन आखिरी दिनों में अपने लोगों की और भी ज़्यादा हिफाज़त कर रहा है और उन्हें आशीष दे रहा है। (यशायाह 54:14, 17 पढ़िए।) लेकिन यहोवा सिर्फ तभी हमारे लिए “निवासस्थान” बना रहेगा, अगर हम शैतान के बहकावे में न आएँ।
11. हम वफादार कुलपिताओं से और कौन-सा सबक सीखते हैं?
11 आइए अब हम अब्राहम, इसहाक और याकूब से एक और सबक सीखें। हालाँकि वे कनान देश में रहते थे, लेकिन उन्होंने वहाँ के लोगों और उनके बुरे और अनैतिक कामों से अपने आपको दूर रखा। (उत्प. 27:46) उन्हें यह जानने के लिए नियमों की एक लंबी-चौड़ी सूची की ज़रूरत नहीं थी कि क्या सही है या क्या गलत। वे अच्छी तरह जानते थे कि यहोवा को किस बात से प्यार है और किससे नफरत। यही वजह है कि उन्होंने खुद को कनानियों से दूर रखा। हमारे लिए वे क्या ही उम्दा मिसाल हैं! दोस्तों और मनोरंजन का चुनाव करते वक्त क्या आप इन वफादार कुलपिताओं की मिसाल पर चलने की जी-तोड़ कोशिश करते हैं? दुख की बात है कि मसीही मंडली में कुछ लोग शैतान की दुनिया में खुद को अजनबी महसूस नहीं करते, उन्हें इस दुनिया की कुछ बातें अच्छी लगती हैं। अगर आप भी ऐसा महसूस करते हैं, तो मदद के लिए यहोवा से प्रार्थना कीजिए। याद रखिए, यह दुनिया शैतान की है और वह सिर्फ अपने बारे में सोचता है, उसे हमारी कोई परवाह नहीं।—2 कुरिं. 4:4; इफि. 2:1, 2.
12. (क) यहोवा अपने सेवकों की मदद कैसे करता है? (ख) आप यहोवा की दी मदद के बारे में कैसा महसूस करते हैं?
12 अगर हम चाहते हैं कि हम शैतान के बहकावे में न आएँ, तो हमें उन सारे इंतज़ामों से फायदा उठाना होगा जो यहोवा अपने सेवकों के लिए करता है। उदाहरण के लिए, वह हमें मसीही सभाओं और पारिवारिक उपासना के ज़रिए मदद देता है। इसके अलावा, उसने “आदमियों के रूप में तोहफे” या प्राचीन दिए हैं जो ज़िंदगी की मुश्किल घड़ियों में हमें दिलासा और सहारा देते हैं। (इफि. 4:8-12) भाई जॉर्ज गैंगस्, जो कई सालों तक शासी निकाय के सदस्य थे, उन्होंने लिखा: “जब मैं [परमेश्वर के लोगों] के बीच होता हूँ, तो मुझे लगता है जैसे मैं अपने परिवार के साथ हूँ।” क्या आप भी ऐसा ही महसूस करते हैं?
13. इब्रानियों 11:13 से हम कौन-सा ज़रूरी सबक सीख सकते हैं?
13 हम कुलपिताओं से एक और सबक सीख सकते हैं, वह यह कि हमें दुनिया के लोगों से अलग नज़र आने से डरना नहीं चाहिए। जैसा हमने पहले पैराग्राफ में पढ़ा था, उन्होंने “सब लोगों के सामने यह ऐलान किया कि वे उस देश में अजनबी और मुसाफिर हैं।” (इब्रा. 11:13) क्या आप दिखाते हैं कि आप दुनिया के लोगों से अलग हैं? कभी-कभी यह मुश्किल हो सकता है। लेकिन आप परमेश्वर और भाई-बहनों की मदद से ऐसा करने में कामयाब हो सकते हैं। याद रखिए, शैतान और इस दुनिया से लड़नेवाले आप अकेले नहीं हैं। जो भी यहोवा की सेवा करना चाहते हैं, उन सभी को यह जंग लड़नी है। (इफि. 6:12) लेकिन हम यह जंग जीत सकते हैं, बशर्ते हम यहोवा पर भरोसा रखें और उसे अपना सुरक्षित निवासस्थान बनाएँ।
14. अब्राहम को किस “शहर” के आने का इंतज़ार था?
14 हमें अब्राहम की मिसाल पर चलते हुए इनाम पर नज़र रखनी चाहिए। (2 कुरिं. 4:18) प्रेषित पौलुस ने लिखा कि अब्राहम “एक ऐसे शहर के इंतज़ार में था, जो सच्ची बुनियाद पर खड़ा है, जिसका निर्माण करनेवाला और रचनेवाला परमेश्वर है।” (इब्रा. 11:10) वह “शहर” मसीहाई राज है। अब्राहम को उस “शहर” के आने का इंतज़ार करना था। एक मायने में, हमें इसका इंतज़ार नहीं करना है। क्योंकि स्वर्ग में इस राज ने शासन करना शुरू कर दिया है। और बाइबल की भविष्यवाणी साफ दिखाती है कि जल्द ही यह राज पूरी धरती पर शासन करेगा। क्या आपको यकीन है कि यह राज सचमुच की सरकार है? क्या आप अपनी ज़िंदगी जीने के तरीके से दिखाते हैं कि आपको इस राज पर पूरा भरोसा है? क्या आप इसे अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देते हैं और इस दुनिया का हिस्सा बनने से दूर रहते हैं?—2 पतरस 3:11, 12 पढ़िए।
यहोवा हमारा “निवासस्थान” बना रहेगा
15. जिन लोगों का भरोसा इस दुनिया पर है, उनका क्या होगा?
15 जैसे-जैसे शैतान की दुनिया का अंत नज़दीक आ रहा है, ‘प्रसव-पीड़ा की तरह मुसीबतें’ बढ़ती जाएँगी। (मत्ती 24:7, 8) महा-संकट के दौरान तो हालात और भी बदतर हो जाएँगे। पूरी दुनिया में विनाश और खलबली मचेगी और लोग डर के मारे सकपका जाएँगे। (हब. 3:16, 17) ऐसे में वे खुद को बचाने के लिए “गुफाओं और पहाड़ी चट्टानों की दरारों” में पनाह लेंगे। (प्रका. 6:15-17) मगर न तो गुफाएँ और ना ही पहाड़ी चट्टान जैसे बड़े-बड़े व्यापारिक या राजनीतिक संगठन उनकी हिफाज़त कर पाएँगे।
16. हमें मसीही मंडली के बारे में कैसा महसूस करना चाहिए? और क्यों?
16 लेकिन यहोवा महा-संकट के समय अपने लोगों के लिए एक सुरक्षित “निवासस्थान” साबित होगा। भविष्यवक्ता हबक्कूक की तरह ये लोग “यहोवा के कारण आनन्दित और मगन” होंगे। वे “अपने उद्धारकर्त्ता परमेश्वर के द्वारा अति प्रसन्न” होंगे। (हब. 3:18) किन तरीकों से यहोवा उस मुश्किल समय में अपने लोगों के लिए “निवासस्थान” साबित होगा? यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन हम एक बात का यकीन रख सकते हैं: मिस्र छोड़ते वक्त जिस तरह इसराएली संगठित थे, उसी तरह “बड़ी भीड़” के लोग भी संगठित होंगे और यहोवा से मिलनेवाली हिदायतों को मानते रहेंगे। (प्रका. 7:9; निर्गमन 13:18 पढ़िए।) यहोवा हमें ये हिदायतें कैसे देगा? शायद वह हमें मंडली के ज़रिए बताए कि हमें क्या करना है। यशायाह 26:20 (पढ़िए।) में “कोठरी” के बारे में बताया गया है, जो यहोवा के लोगों को पनाह देगी। शायद इन कोठरियों का गहरा ताल्लुक इन्हीं मंडलियों से हो जो आज दुनिया-भर में मौजूद हैं। क्या आप मसीही सभाओं की कदर करते हैं? क्या आप बिना देर किए उन हिदायतों को मानते हैं, जो यहोवा मंडली के ज़रिए देता है?—इब्रा. 13:17.
17. यहोवा के जो वफादार सेवक मौत की नींद सो रहे हैं, उनके लिए वह किस तरह “निवासस्थान” है?
17 यहोवा के जिन वफादार सेवकों की मौत महा-संकट से पहले होती है, उनके लिए भी वह “निवासस्थान” साबित होगा। वह कैसे? यहोवा उन्हें मरे हुओं में से जी उठाएगा। वफादार कुलपिताओं के मरने के कई सालों बाद, यहोवा ने मूसा से कहा: “मैं . . . इब्राहीम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर, और याक़ूब का परमेश्वर हूं।” (निर्ग. 3:6) यीशु ने इन शब्दों का हवाला देकर आगे कहा: “वह मरे हुओं का नहीं, बल्कि जीवितों का परमेश्वर है, इसलिए कि वे सभी उसकी नज़र में ज़िंदा हैं।” (लूका 20:38) जी हाँ, यहोवा के लिए उसके वफादार सेवकों का जी उठना इतना पक्का है कि उसकी नज़रों में मानो वे ज़िंदा हैं!—सभो. 7:1.
18. यहोवा नयी दुनिया में अपने लोगों के लिए कैसे “निवासस्थान” साबित होगा?
18 नयी दुनिया में, यहोवा अपने लोगों के लिए एक और मायने में “निवासस्थान” साबित होगा। प्रकाशितवाक्य 21:3 कहता है: “परमेश्वर का डेरा इंसानों के बीच है। वह उनके साथ रहेगा।” शुरू-शुरू में यहोवा अपने नुमाइंदे, मसीह यीशु के ज़रिए अपनी प्रजा के साथ रहेगा और उन पर राज करेगा। हज़ार साल के खत्म होने पर, यीशु धरती के लिए अपने पिता का मकसद पूरा कर चुका होगा और तब वह यहोवा को उसका राज वापस सौंप देगा। (1 कुरिं. 15:28) उसके बाद यहोवा सिद्ध इंसानों पर सीधे-सीधे राज करेगा। हमारे आगे क्या ही सुनहरा भविष्य रखा है! उस वक्त के आने तक आइए हम पुराने ज़माने के वफादार सेवकों की मिसाल पर चलते हुए यहोवा को अपना “निवासस्थान” बनाएँ।