प्रचारक की अपनी भूमिका अच्छी तरह निभाइए
“प्रचारक का काम कर, अपनी सेवा को अच्छी तरह पूरा कर।”—2 तीमु. 4:5.
1. यहोवा को सबसे पहला और सबसे महान प्रचारक क्यों कहा जा सकता है?
प्रचारक वह होता है जो खुशखबरी सुनाता है। सबसे पहला और सबसे महान प्रचारक, खुद यहोवा परमेश्वर है। हमारे पहले माता-पिता के बगावत करने के तुरंत बाद, यहोवा ने खुशखबरी सुनायी कि साँप, यानी शैतान को नाश कर दिया जाएगा। (उत्प. 3:15) सदियों तक यहोवा ने वफादार आदमियों को इस बारे में लिखने के लिए उभारा कि कैसे वह अपने नाम पर लगा कलंक मिटाएगा, कैसे वह शैतान की वजह से आयी मुश्किलें दूर कर देगा और कैसे वह इंसानों को वे सारी आशीषें देगा, जो आदम और हव्वा ने गवाँ दी थीं।
2. (क) प्रचार के काम में स्वर्गदूत क्या भाग अदा करते हैं? (ख) यीशु ने प्रचारकों के लिए कैसे एक मिसाल कायम की?
2 स्वर्गदूत भी प्रचारक हैं। वे खुद खुशखबरी सुनाते हैं और दूसरों को भी खुशखबरी फैलाने में मदद देते हैं। (लूका 1:19; 2:10; प्रेषि. 8:26, 27, 35; प्रका. 14:6) क्या प्रधान स्वर्गदूत मिकाएल भी एक प्रचारक है? जब उसने धरती पर यीशु के तौर पर जन्म लिया, तो उसके लिए सबसे ज़रूरी काम था, खुशखबरी का प्रचार करना। इस तरह, उसने हम प्रचारकों के लिए एक मिसाल कायम की।—लूका 4:16-21.
3. (क) हम कौन-सी खुशखबरी सुनाते हैं? (ख) प्रचारक होने के नाते, हमें किन सवालों के जवाब जानने की ज़रूरत है?
3 यीशु ने अपने चेलों को प्रचारक बनने की आज्ञा दी। (मत्ती 28:19, 20; प्रेषि. 1:8) प्रेषित पौलुस ने अपने साथी तीमुथियुस को उकसाया: “प्रचारक का काम कर, अपनी सेवा को अच्छी तरह पूरा कर।” (2 तीमु. 4:5) यीशु के चेले होने के नाते हम कौन-सी खुशखबरी सुनाते हैं? इस खुशखबरी में दिलासा देनेवाली यह सच्चाई शामिल है कि स्वर्ग में रहनेवाला हमारा पिता, यहोवा हमसे प्यार करता है। (यूह. 3:16; 1 पत. 5:7) और यह प्यार वह खासकर अपने राज के ज़रिए ज़ाहिर करता है। इसलिए हम खुशी-खुशी दूसरों को बताते हैं कि अगर वे इस राज के अधीन होंगे, परमेश्वर की आज्ञा मानेंगे और उसके स्तरों के मुताबिक काम करेंगे, तो वे परमेश्वर के दोस्त बन सकते हैं। (भज. 15:1, 2) दरअसल, यह यहोवा का मकसद है कि वह हर तरह की दुख-तकलीफें दूर करे। इसके अलावा, बीते समय की कड़वी यादों से पहुँचनेवाले हर दर्द को भी वह मिटा देगा। यह क्या ही खुशखबरी है! (यशा. 65:17) तो फिर, प्रचारक होने के नाते हमें दो अहम सवालों के जवाब जानने की ज़रूरत है: यह क्यों ज़रूरी है कि लोग आज खुशखबरी सुनें? और हम प्रचारक के तौर पर अपनी भूमिका कैसे अच्छी तरह अदा कर सकते हैं?
लोगों के लिए खुशखबरी जानना क्यों ज़रूरी है?
4. परमेश्वर के बारे में कौन-सी झूठी कहानियाँ सुनायी जाती हैं?
4 कल्पना कीजिए कि आपसे झूठ बोला जाता है कि आपके पिता, आपको और आपके पूरे परिवार को बेसहारा छोड़कर चले गए हैं। कुछ लोग जो दावा करते हैं कि वे आपके पिता को जानते थे, उनका कहना है कि वे मिलनसार नहीं थे, वे बातें छिपाते थे और बहुत कठोर थे। कुछ तो आपसे यह भी कहते हैं कि उन्हें ढूँढ़ने का कोई फायदा नहीं, क्योंकि वे मर चुके हैं। दरअसल, परमेश्वर के बारे में कुछ इसी तरह की बातें कही जाती हैं। लोगों को सिखाया जाता है कि परमेश्वर एक पहेली है जिसे कोई नहीं जान सकता या वह क्रूर है। उदाहरण के लिए, कुछ धार्मिक अगुवे कहते हैं कि परमेश्वर बुरे लोगों को हमेशा के लिए नरक में तड़पाता है। कुछ लोग प्राकृतिक विपत्तियों के लिए परमेश्वर को कसूरवार ठहराते हैं। हालाँकि ऐसी विपत्तियों में अच्छे और बुरे सभी मारे जाते हैं, लेकिन फिर भी लोग मानते हैं कि इन विपत्तियों के ज़रिए परमेश्वर इंसानों को सज़ा देता है।
5, 6. विकासवाद की शिक्षा और झूठी शिक्षाओं ने लोगों पर कैसे असर किया है?
5 दूसरे लोग दावा करते हैं कि परमेश्वर है ही नहीं। इस मामले में, विकासवाद की शिक्षा पर गौर कीजिए। इस शिक्षा को बढ़ावा देनेवाले कई लोग कहते हैं कि जीवन की शुरूआत खुद-ब-खुद हो गयी, इसे किसी ने नहीं रचा है। वे दावा करते हैं कि कोई सृष्टिकर्ता नहीं है। कुछ तो यहाँ तक कहते हैं कि इंसान जानवरों से आया है, इसलिए इसमें कोई हैरानी की बात नहीं कि वह कई बार जानवरों जैसा बरताव करता है। वे बहस करते हैं कि ताकतवर लोगों का कमज़ोरों पर बेरहमी से अधिकार जमाना स्वाभाविक है। इसलिए इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि बहुत-से लोगों का मानना है कि इंसानों के बीच नाइंसाफी हमेशा रहेगी। इस वजह से, जो लोग विकासवाद को मानते हैं, उनके पास भविष्य की कोई आशा नहीं है।
6 इसमें कोई शक नहीं कि इन आखिरी दिनों में इंसानों को जिन तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है, उसके पीछे विकासवाद की शिक्षा और झूठी शिक्षाओं का भी हाथ है। (रोमि. 1:28-31; 2 तीमु. 3:1-5) इंसान की बनायी ये शिक्षाएँ खुशखबरी नहीं हैं। इसके बजाय, जैसे प्रेषित पौलुस ने बताया, इन शिक्षाओं की वजह से लोग “दिमागी तौर पर अंधकार में हैं और उस ज़िंदगी से दूर हैं जो परमेश्वर देता है।” (इफि. 4:17-19) साथ ही, विकासवाद की शिक्षा और दूसरी झूठी शिक्षाओं ने लोगों को परमेश्वर की तरफ से मिलनेवाली खुशखबरी से दूर रखा है।—इफिसियों 2:11-13 पढ़िए।
7, 8. खुशखबरी को अच्छी तरह जानने का सिर्फ एक ज़रिया क्या है?
7 जो लोग परमेश्वर के साथ रिश्ता जोड़ना चाहते हैं, उन्हें पहले इस बात का यकीन होना चाहिए कि यहोवा अस्तित्व में है, उसे जानना हमारे लिए ज़रूरी है और इसमें हमारी ही भलाई है। परमेश्वर को जानने में हम उनकी मदद कर सकते हैं। कैसे? उन्हें बढ़ावा देकर कि वे सृष्टि का अध्ययन करें। जब लोग सृष्टि का अध्ययन करने के लिए राज़ी होते हैं और उसके बारे में गहराई से सोचते हैं, तब वे परमेश्वर की बुद्धि और शक्ति के बारे में जान पाते हैं। (रोमि. 1:19, 20) हमारे महान सृष्टिकर्ता ने जो कुछ बनाया है उस बारे में सोचकर लोगों के मन में श्रृद्धा पैदा हो, इसके लिए हम वॉज़ लाइफ क्रिएटेड और जीवन की शुरूआत—पाँच सवाल जवाब जानना ज़रूरी ब्रोशरों का इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन ज़िंदगी से जुड़े ऐसे कई सवाल हैं, जिनके जवाब सिर्फ सृष्टि पर गौर करने से नहीं मिल सकते। जैसे, परमेश्वर दुख-तकलीफों की इजाज़त क्यों देता है? धरती के लिए परमेश्वर का क्या मकसद है? क्या परमेश्वर हममें से हरेक की परवाह करता है?
8 परमेश्वर और उसके मकसद के बारे में खुशखबरी को अच्छी तरह जानने का एक ही ज़रिया है, और वह है बाइबल का अध्ययन करना। लोगों को उनके सवालों के जवाब पाने में मदद देना हमारे लिए क्या ही सम्मान की बात है! लेकिन अगर हम अपने सुननेवालों के दिल तक पहुँचना चाहते हैं, तो उन्हें सिर्फ जानकारी देना काफी नहीं होगा; हमें उन्हें दलीलें देकर यकीन भी दिलाना होगा कि क्यों वे इन बातों पर विश्वास कर सकते हैं। (2 तीमु. 3:14) यीशु की मिसाल पर चलकर हम लोगों को खुशखबरी पर यकीन दिलाने में और भी माहिर हो सकते हैं। इस मामले में यीशु इतना असरदार कैसे था? एक वजह थी कि वह सवालों का अच्छा इस्तेमाल करता था। हम उसकी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
कामयाब प्रचारक असरदार सवालों का इस्तेमाल करते हैं
9. अगर हम खुशखबरी कबूल करने में लोगों की मदद करना चाहते हैं, तो हमें क्या करना होगा?
9 यीशु की तरह, हमें क्यों प्रचार में सवालों का इस्तेमाल करना चाहिए? मान लीजिए आपका डॉक्टर आपसे कहता है कि उसके पास आपके लिए एक अच्छी खबर है। वह आपकी बीमारी ठीक कर सकता है, लेकिन इसके लिए आपको एक बड़ा ऑपरेशन करवाना होगा। आप शायद उसकी बात पर विश्वास कर लें। लेकिन अगर वह यही बात आपकी बीमारी के बारे में कुछ पूछे बगैर कह दे, तब आप क्या करेंगे? ज़ाहिर है आप उस पर भरोसा नहीं करेंगे। एक डॉक्टर चाहे कितना ही काबिल क्यों न हो, कोई भी ज़रूरी मदद देने से पहले उसे मरीज़ से सवाल पूछने चाहिए और उसकी परेशानी सुननी चाहिए। ठीक उसी तरह, अगर हम राज की खुशखबरी कबूल करने में लोगों की मदद करना चाहते हैं, तो हमें असरदार सवाल पूछने की कला में महारत हासिल करनी होगी। उनके विश्वासों के बारे में जानने के बाद ही हम उन्हें सही मदद दे पाएँगे।
अपने सुननेवालों के दिल तक पहुँचने के लिए, हमें उन्हें खुशखबरी पर यकीन दिलाना चाहिए
10, 11. यीशु के सिखाने के तरीके पर चलकर हम क्या कर पाएँगे?
10 यीशु जानता था कि सोच-समझकर पूछे गए सवाल एक शिक्षक को न सिर्फ अपने विद्यार्थी को जानने में, बल्कि उसे बातचीत में शामिल करने में भी मदद देते हैं। उदाहरण के लिए, जब यीशु अपने चेलों को नम्रता का सबक सिखाना चाहता था, तो उसने सबसे पहले उनसे एक ऐसा सवाल पूछा जिसने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया। (मर. 9:33) एक दफा, यीशु ने पतरस से एक सवाल किया और उसके दो जवाब सुझाए। फिर यीशु ने उससे कहा कि वह उनमें से सही जवाब चुने। इस तरह, पतरस को एक ज़रूरी सबक सीखने में मदद मिली। (मत्ती 17:24-26) एक और मौके पर, यीशु अपने चेलों के दिल की बात जानना चाहता था, इसलिए उसने उनसे एक-के-बाद-एक ऐसे कई सवाल पूछे जिससे वे अपनी राय ज़ाहिर कर सकें। (मत्ती 16:13-17 पढ़िए।) यीशु ने लोगों को सिर्फ यह नहीं बताया कि उन्हें क्या करना चाहिए। बल्कि जिस तरीके से उसने सवाल पूछे, उससे उसने लोगों को खुशखबरी कबूल करने और अपनी ज़िंदगी में बदलाव करने का बढ़ावा भी दिया।
11 यीशु की मिसाल पर चलते हुए जब हम असरदार सवाल पूछते हैं, तो हम कम-से-कम तीन चीज़ें कर पाते हैं। सबसे पहले, हम जान पाते हैं कि हम कैसे बेहतर तरीके से लोगों की मदद कर सकते हैं। दूसरा, हम उन लोगों के साथ बात करना जारी रख पाते हें, जो हमसे सहमत नहीं होते। और तीसरा, हम लोगों को सिखा पाते हैं कि कैसे वे चर्चा की जा रही जानकारी से फायदा पा सकते हैं। अब आइए ऐसे तीन उदाहरणों पर गौर करें, जो दिखाते हैं कि हम कैसे सवालों का बढ़िया इस्तेमाल कर सकते हैं।
12-14. पूरे यकीन के साथ दूसरों को खुशखबरी सुनाने में आप अपने बच्चे की मदद कैसे कर सकते हैं? एक उदाहरण दीजिए।
12 उदाहरण 1: माता-पिताओ, अगर आपका किशोर बच्चा अपने साथ पढ़नेवालों के सामने सृष्टि के बारे में अपने विश्वास की पैरवी नहीं कर पा रहा, तब आप क्या कर सकते हैं? बेशक आप उसकी मदद करना चाहेंगे, जिससे वह दूसरों को पूरे यकीन के साथ खुशखबरी सुना सके। उसे डाँटने या फौरन सलाह देने के बजाय, क्यों न आप यीशु की मिसाल पर चलें और उसकी राय जानने के लिए उससे कुछ सवाल पूछें? आप ऐसा कैसे कर सकते हैं?
13 अपने बच्चे के साथ जीवन की शुरूआत—पाँच सवाल जवाब जानना ज़रूरी ब्रोशर में से कुछ हिस्से पढ़ने के बाद, आप उससे पूछ सकते हैं कि उसे कौन-से मुद्दे सबसे ज़्यादा दिलचस्प लगे। उससे पूछिए कि इनके अलावा, वह और किस वजह से सृष्टिकर्ता पर यकीन करता है और क्यों परमेश्वर की इच्छा पूरी करना चाहता है। (रोमि. 12:2) अपने बच्चे को बताइए कि ज़रूरी नहीं कि सृष्टिकर्ता पर यकीन करने की उसकी वजह वही हो, जो आपकी है।
14 अपने बच्चे को समझाइए कि वह साथ पढ़नेवाले के साथ उसी तरह बातचीत कर सकता है, जैसे आपने अपने बच्चे के साथ की। यानी आपका बच्चा अपने साथी को सृष्टि के बारे में कुछ सच्चाइयाँ बता सकता है और फिर उस बारे में उसकी राय पूछ सकता है। मिसाल के लिए, वह साथ पढ़नेवाले से कह सकता है कि वह जीवन की शुरुआत ब्रोशर के पेज 21 पर दिया बक्स पढ़े। फिर आपका बच्चा पूछ सकता है, “क्या यह सच है कि डी.एन.ए. में इस दुनिया के किसी भी कंप्यूटर से कहीं ज़्यादा जानकारी हो सकती है?” ज़ाहिर है उसका साथी “हाँ” में जवाब देगा। फिर आपका बच्चा पूछ सकता है, “अगर यह सच है, तो क्या यह मानना अक्लमंदी नहीं होगी कि ठीक जैसे कंप्यूटर को किसी ने बनाया है, उसी तरह डी.एन.ए. को भी किसी ने बनाया है?” आपका बच्चा अपने विश्वास के बारे में दूसरों को और भी यकीन के साथ बता सके, इसके लिए आप उसके साथ समय-समय पर रिहर्सल कर सकते हैं। अगर आप उसे असरदार सवाल पूछना सिखाएँगे, तो आप उसे एक अच्छा प्रचारक बनने में मदद दे रहे होंगे।
15. एक नास्तिक की मदद करने के लिए हम सवालों का कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं?
15 उदाहरण 2: प्रचार में हम ऐसे लोगों से भी मिलते हैं जो परमेश्वर के वजूद पर शक करते हैं या उस पर विश्वास ही नहीं करते। मान लीजिए एक घर-मालिक आपसे कहता है कि वह नास्तिक है। उसके ऐसा कहने पर वहीं बातचीत खत्म करने के बजाय, आप आदर के साथ उससे पूछ सकते हैं कि वह कब से नास्तिक है और किस वजह से उसका ऐसा नज़रिया है। उसका जवाब सुनने के बाद आप उसकी तारीफ कर सकते हैं कि उसने इस मामले पर इतनी गहराई से सोचा। इसके बाद, आप उससे पूछ सकते हैं कि क्या उसे लगता है कि ऐसी जानकारी पढ़ने में कोई बुराई है, जिसमें इस बात के सबूत दिए गए हैं कि जीवन की सृष्टि की गयी थी। अगर वह अपने नज़रिए पर अड़ा रहनेवाला इंसान नहीं है, तो बेशक वह कहेगा “नहीं।” फिर आप उसे वॉज़ लाइफ क्रिएटेड या जीवन की शुरूआत—पाँच सवाल जवाब जानना ज़रूरी ब्रोशर दे सकते हैं। सोच-समझकर और आदर से पूछे गए सवालों के ज़रिए, हम एक इंसान के दिल तक खुशखबरी पहुँचा सकते हैं।
16. हमें क्यों ध्यान रखना चाहिए कि बाइबल विद्यार्थी सवालों के जवाब सीधे किताब से पढ़कर न दे?
16 उदाहरण 3: बाइबल अध्ययन के दौरान, अगर आपका बाइबल विद्यार्थी हर सवाल का जवाब सीधे अध्ययन की किताब से ही दे, तो क्या हो सकता है? ऐसे में वह सच्चाई में तरक्की नहीं कर पाएगा। क्यों? क्योंकि जो विद्यार्थी बिना मनन किए सवाल का जवाब सीधे पढ़कर देता है, वह ऐसे पौधे की तरह है, जिसकी जड़ें गहरी नहीं हैं। ऐसे में जब विरोध की कड़कती धूप उस पर पड़ती है, तो वह मुरझा सकता है, यानी सच्चाई को छोड़ सकता है। (मत्ती 13:20, 21) ऐसा न हो, इसके लिए हमें अपने विद्यार्थी से पूछना चाहिए कि जो वह सीख रहा है, उस बारे में वह कैसा महसूस करता है। यह जानने की कोशिश कीजिए कि क्या वह सीखी बातों से सहमत है। इससे भी बढ़कर, उससे पूछिए कि क्यों वह उन बातों से सहमत है या क्यों नहीं है। फिर बाइबल की आयतों पर गहराई से सोचने में उसकी मदद कीजिए, ताकि आगे चलकर वह खुद सही नतीजे पर पहुँच सके। (इब्रा. 5:14) अगर हम सवालों का असरदार तरीके से इस्तेमाल करेंगे, तो विद्यार्थी का विश्वास मज़बूत होगा। और जब दूसरे उसका विरोध करेंगे या उसे बहकाने की कोशिश करेंगे, तो मुमिकन है कि वह वफादार रह पाएगा। (कुलु. 2:6-8) अच्छा प्रचारक बनने के लिए हम और क्या कर सकते हैं?
कामयाब प्रचारक एक-दूसरे की मदद करते हैं
17, 18. प्रचार में जब आपका साथी बात कर रहा होता है, तो आप कैसे उसकी मदद कर सकते हैं?
17 यीशु ने अपने चेलों को प्रचार में दो-दो की जोड़ी में भेजा था। (मर. 6:7; लूका 10:1) बाद में, प्रेषित पौलुस ने अपने “सहकर्मियों” का ज़िक्र किया, जिन्होंने ‘खुशखबरी सुनाने में उसके साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर कड़ी मेहनत की।’ (फिलि. 4:3) बाइबल में दिए इस नमूने पर चलते हुए, सन् 1953 में संगठन ने एक खास कार्यक्रम शुरू किया, जिसमें राज के प्रचारक दूसरों को प्रचार काम के लिए तालीम देने लगे।
18 जब आप प्रचार में दूसरे प्रचारक के साथ जाते हैं, तो आप कैसे अपने साथी की मदद कर सकते हैं? (1 कुरिंथियों 3:6-9 पढ़िए।) घर-मालिक से बात करते वक्त आपका साथी जो आयत पढ़ रहा है, उसे अपनी बाइबल से खोलकर देखिए। जब आपका साथी या घर-मालिक बात करता है, तो उनकी ओर देखिए। बातचीत को ध्यान से सुनिए, ताकि अगर घर-मालिक किसी बात पर सवाल करे और आपके साथी को ज़रूरत पड़े, तो आप उसकी मदद कर सकें। (सभो. 4:12) मगर ध्यान रहे कि जब आपका साथी अच्छे से तर्क कर रहा हो या जब घर-मालिक बात कर रहा हो, तो आप बीच में न बोलें। जोश में आकर बीच में दखल देने से हो सकता है आप अपने साथी को निराश कर दें और घर-मालिक भी बात न समझ पाए। कभी-कभी बातचीत में शामिल होना गलत नहीं। मगर जब भी आप कुछ कहते हैं, तो उसे कम शब्दों में कहिए। उसके बाद अपने साथी को बातचीत जारी रखने दीजिए।
19. हमें क्या बात याद रखनी चाहिए? और क्यों?
19 एक घर से दूसरे घर जाते वक्त, आप और आपका साथी कैसे एक-दूसरे की मदद कर सकते हैं? क्यों न इस दौरान आप यह चर्चा करें कि आप कैसे अपने प्रदर्शन को और असरदार बना सकते हैं? ध्यान रखिए कि आप अपने इलाके में रहनेवाले लोगों के बारे में कुछ ऐसा न कहें, जिससे आपका साथी का हौसला टूट जाए। इसके अलावा, अपने भाई-बहनों की खामियों के बारे में बात करने के फँदे से बचिए। (गला. 5:15) हमें यह याद रखना चाहिए कि हममें से कोई भी सिद्ध नहीं है, हम मिट्टी के बरतन ही हैं। यहोवा ने हम पर महा-कृपा करके हमें एक खज़ाना दिया है, और वह है, खुशखबरी का प्रचार करने का काम। (2 कुरिंथियों 4:1, 7 पढ़िए।) तो आइए हम सब अच्छे प्रचारक बनने में अपना भरसक करें और इस खज़ाने के लिए अपनी कदरदानी दिखाएँ।