अच्छी तरह तैयार की गयी प्रार्थना से कुछ सबक
“तेरा महिमायुक्त नाम धन्य कहा जाए।”—नहे. 9:5.
1. परमेश्वर के लोगों की किस सभा के बारे में हम और सीखेंगे? हमें किन सवालों के बारे में सोचना चाहिए?
ईसा पूर्व 455 में लेवियों ने परमेश्वर के लोगों से ये दिल छू लेनेवाले शब्द कहे, “खड़े हो; अपने परमेश्वर यहोवा को अनादिकाल से अनन्तकाल तक धन्य कहो।” यह कहकर लेवियों ने परमेश्वर के लोगों को न्यौता दिया कि वे इकट्ठा हों और यहोवा से प्रार्थना करें। यह बाइबल में दर्ज़ सबसे लंबी प्रार्थनाओं में से एक है। (नहे. 9:4, 5) यह सभा यहूदी कैलेंडर के मुताबिक, तिशरी (सितंबर/अक्टूबर) नाम के सातवें महीने के 24वें दिन यरूशलेम में रखी गयी थी। जैसे-जैसे हम इस खास सभा पर गौर करेंगे, इन सवालों के बारे में सोचिए: ‘लेवियों की किस अच्छी आदत ने इस सभा को इतना कामयाब बनाया? इस अच्छी तरह तैयार की गयी प्रार्थना से मैं और क्या-क्या सबक सीख सकता हूँ?’ आइए सबसे पहले उन घटनाओं पर गौर करें, जो इस खास दिन से पहले घटी थीं।—भज. 141:2.
एक खास महीना
2. इसराएली कैसे आज हमारे लिए एक अच्छी मिसाल हैं?
2 उस खास सभा से एक महीने पहले, यहूदियों ने यरूशलेम की दीवारों को दोबारा बनाने का काम खत्म किया था। (नहे. 6:15) परमेश्वर के लोगों ने यह काम सिर्फ 52 दिनों में खत्म किया। इसके बाद, अगले महीने के, यानी तिशरी के पहले दिन वे एक चौक में इकट्ठा हुए, ताकि वे एज्रा और दूसरे लेवियों की सुन सकें, जो परमेश्वर का कानून पढ़कर सुना रहे थे और उसे समझा रहे थे। परिवार के सभी सदस्यों ने, जिसमें ऐसे बच्चे भी शामिल थे जो “सुनकर समझ सकते थे,” “भोर से दो पहर तक” खड़े रहकर सुना। ये इसराएली आज हम सभी के लिए एक बहुत ही अच्छी मिसाल हैं। हालाँकि हम राज-घर में आराम से बैठकर सभाओं का लुत्फ उठाते हैं, मगर कभी-कभी हमारा चंचल मन यहाँ-वहाँ भटकने लगता है। वहाँ सभाएँ चल रही होती हैं, और हम यहाँ कुछ और ही सोच रहे होते हैं। मगर उन इसराएलियों ने कानून पर न सिर्फ ध्यान दिया, बल्कि उन बातों पर मनन भी किया। इतना ही नहीं, जब उन्हें एहसास हुआ कि वे परमेश्वर की आज्ञाओं को नहीं मान रहे हैं, तब वे रोने लगे।—नहे. 8:1-9.
3. इसराएलियों ने कौन-सी आज्ञा मानी?
3 यह दिन इसराएलियों के लिए अपने पाप कबूल करने का नहीं था। यह त्योहार का दिन था और यहोवा चाहता था कि वे इस दिन खुशियाँ मनाएँ। (गिन. 29:1) इसलिए नहेमायाह ने उन लोगों से कहा: “जाओ चिकना चिकना भोजन करो और मीठा मीठा रस पियो, और जिनके लिये कुछ तैयार नहीं हुआ उनके पास बैना [“हिस्सा,” अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन] भेजो; क्योंकि आज का दिन हमारे प्रभु के लिये पवित्र है; और उदास मत रहो, क्योंकि यहोवा का आनन्द तुम्हारा दृढ़ गढ़ है।” खुशी की बात है कि इसराएलियों ने आज्ञा मानी और उस दिन “बड़ा आनन्द” मनाया गया।—नहे. 8:10-12.
4. (क) इसराएली परिवार के मुखियाओं ने क्या किया? और अध्ययन करने पर उन्होंने क्या पाया? (ख) इस ‘झोपड़ियों के त्योहार’ के हर दिन लेवियों ने क्या किया?
4 इसके अगले ही दिन, परिवार के सभी मुखिया परमेश्वर के कानून का अध्ययन करने के लिए इकट्ठा हुए, ताकि वे यह पक्का कर सकें कि वे परमेश्वर की सारी आज्ञाएँ मान रहे हैं या नहीं। कानून का अध्ययन करने पर उन्होंने पाया कि इसराएल राष्ट्र को तिशरी महीने के 15वें दिन से लेकर 22वें दिन तक ‘झोपड़ियों का त्योहार’ और उसके आखिर में महासभा रखनी चाहिए। इसलिए वे लोग तभी से इसे मनाने की तैयारी में लग गए। यहोशू के समय से लेकर जितने भी त्योहार मनाए गए, उनमें यह त्योहार सबसे कामयाब साबित हुआ और उस दिन “बहुत बड़ा आनन्द” मनाया गया। उस त्योहार की एक खास बात यह थी कि उस त्योहार के हर दिन लेवियों ने लोगों को परमेश्वर के कानून में से पढ़कर सुनाया।—नहे. 8:13-18.
पाप कबूल करने का दिन
5. लेवियों के प्रार्थना शुरू करने से ठीक पहले परमेश्वर के लोगों ने क्या किया?
5 त्योहार के दो दिन बाद, यानी तिशरी के 24वें दिन, वह समय आ गया था जब इसराएली अपने पापों को कबूल करें। यह खाने-पीने या जश्न मनाने का दिन नहीं था। इसके बजाय, परमेश्वर के लोगों ने उपवास किया और मातम मनाने की निशानी के तौर पर टाट ओढ़ा। एक बार फिर, लेवियों ने सुबह करीब तीन घंटे तक उन्हें परमेश्वर का कानून पढ़कर सुनाया। दोपहर को लोग “अपने पापों को मानते, और अपने परमेश्वर यहोवा को दण्डवत करते रहे।” इसके बाद, लेवियों ने सभी की तरफ से पहले से अच्छी तरह तैयार की गयी प्रार्थना की। —नहे. 9:1-4.
6. लेवियों को दिल छू लेनेवाली प्रार्थना करने में किस बात ने मदद दी? और हम लेवियों से क्या सीख सकते हैं?
6 लेवी हर रोज़ परमेश्वर का कानून पढ़ा करते थे, और इसी वजह से उन्हें यह दिल छू लेनेवाली प्रार्थना तैयार करने में मदद मिली। प्रार्थना की शुरूआत में लेवियों ने यहोवा के कामों और गुणों का बखान किया। बाकी की प्रार्थना में लेवियों ने परमेश्वर के “अति दयालु” होने के गुण पर कई बार ज़ोर दिया और यह खुलकर कबूल किया कि इसराएली इस दया के लायक नहीं थे। (नहे. 9:19, 27, 28, 31) अगर हम भी लेवियों की तरह रोज़ परमेश्वर का वचन पढ़कर उस पर मनन करें, तो हम परमेश्वर को हमसे बात करने दे रहे होंगे। और जब हम उससे प्रार्थना करेंगे, तो हमारे पास उससे बात करने के लिए बहुत-से विषय होंगे और हमारी प्रार्थनाएँ दिल-से होंगी। इस तरह, हमारी हर प्रार्थना में एक नयापन झलकेगा।—भज. 1:1, 2.
7. लेवियों ने परमेश्वर से क्या गुज़ारिश की? और हम उनकी मिसाल से क्या सीख सकते हैं?
7 अपनी प्रार्थना में, लेवियों ने सिर्फ एक छोटी-सी गुज़ारिश की। प्रार्थना के आखिर में उन्होंने कहा: “अब तो हे हमारे परमेश्वर! हे महान पराक्रमी और भययोग्य ईश्वर! जो अपनी वाचा पालता और करुणा करता रहा है, जो बड़ा कष्ट, अश्शूर के राजाओं के दिनों से ले आज के दिन तक हमें और हमारे राजाओं, हाकिमों, याजकों, नबियों, पुरखाओं, वरन तेरी समस्त प्रजा को भोगना पड़ा है, वह तेरी दृष्टि में थोड़ा न ठहरे।” (नहे. 9:32) इस तरह, लेवियों ने हमारे आगे एक बढ़िया मिसाल रखी कि हमें अपनी प्रार्थनाओं में खुद के लिए कोई भी गुज़ारिश करने से पहले, यहोवा की बड़ाई और उसका धन्यवाद करना चाहिए।
परमेश्वर के महिमायुक्त नाम की बड़ाई करना
8, 9. (क) लेवियों ने अपनी प्रार्थना किस तरह नम्रता दिखाते हुए शुरू की? (ख) लेवियों ने अपनी प्रार्थना में किन दो सेनाओं का ज़िक्र किया?
8 लेवी नम्र लोग थे। हालाँकि उन्होंने बहुत ही खूबसूरत प्रार्थना की थी, लेकिन फिर भी उन्हें महसूस हुआ कि प्रार्थना में कहे गए उनके लफ्ज़ इस हद तक परमेश्वर की महिमा नहीं कर पाए, जिसे पाने का वह हकदार है। इसलिए उन्होंने नम्रता से सारे इसराएलियों की तरफ से अपनी प्रार्थना इस तरह शुरू की: “तेरा महिमायुक्त नाम धन्य कहा जाए, जो सब धन्यवाद और स्तुति से परे है।”—नहे. 9:5.
9 प्रार्थना इस तरह जारी रहती है: “तू ही अकेला यहोवा है; स्वर्ग वरन सब से ऊंचे स्वर्ग और [“उसकी सारी सेना,” एन.डब्ल्यू.], और पृथ्वी और जो कुछ उस में है, और समुद्र और जो कुछ उस में है, सभों को तू ही ने बनाया, और सभों की रक्षा तू ही करता है; और स्वर्ग की समस्त सेना तुझी को दण्डवत करती हैं।” (नहे. 9:6) यहाँ पर लेवियों ने यहोवा की बनायी कुछ खूबसूरत चीज़ों का ज़िक्र किया। उन्होंने कहा कि यहोवा ने स्वर्ग और “उसकी सारी सेना,” (एन.डब्ल्यू.) यानी अनगिनत तारों से भरी मंदाकिनियों को रचा। उसने पृथ्वी पर पायी जानेवाली सारी खूबसूरत चीज़ें भी रचीं और जीवों को यह काबिलीयत दी कि वे बच्चे पैदा करें। प्रार्थना में एक और तरह की सेना का भी ज़िक्र किया गया है। ये परमेश्वर के स्वर्गदूत हैं, जिन्हें “स्वर्ग की समस्त सेना” कहा गया है। (1 राजा 22:19; अय्यू. 38:4, 7) ये स्वर्गदूत असिद्ध इंसानों की सेवा करके नम्रता से परमेश्वर की मरज़ी पूरी करते हैं। (इब्रा. 1:14) आज हम भी तालीम पायी हुई सेना की तरह साथ मिलकर परमेश्वर की सेवा कर रहे हैं। हमें भी नम्र होकर परमेश्वर की सेवा करने में स्वर्गदूतों की मिसाल पर चलना चाहिए।—1 कुरिं. 14:33, 40.
10. परमेश्वर अब्राहम के साथ जिस तरह पेश आया, उससे हम क्या सीखते हैं?
10 इसके बाद, लेवियों ने अपनी प्रार्थना में ज़िक्र किया कि परमेश्वर अब्राम के साथ कैसे पेश आया। यहोवा ने अब्राम का नाम बदलकर अब्राहम रख दिया, जिसका मतलब है “बहुत-सी जातियों का पिता,” (अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन) जबकि उस वक्त अब्राहम की उम्र 99 साल थी और उसके कोई बच्चा नहीं था। (उत्प. 17:1-6, 15, 16) परमेश्वर ने अब्राहम से यह भी वादा किया कि उसके वंश को कनान देश विरासत में मिलेगा। और लेवियों ने बताया कि कैसे यहोवा ने अपना वादा पूरा किया: “हे यहोवा! तू वही परमेश्वर है, जो अब्राहाम को चुनकर कसदियों के ऊर नगर में से निकाल लाया, और उसका नाम इब्राहीम रखा; और उसके मन को अपने साथ सच्चा पाकर, उस से वाचा बान्धी, कि मैं तेरे वंश को कनानियों . . . का देश दूंगा; और तू ने अपना वह वचन पूरा भी किया, क्योंकि तू धर्मी है।” (नहे. 9:7, 8) इंसान अकसर अपने वादे भूल जाते हैं, मगर हमें यहोवा की मिसाल पर चलकर हमेशा अपने वादे निभाने चाहिए।—मत्ती 5:37.
यहोवा ने अपने लोगों के लिए शानदार काम किए
11, 12. यहोवा के नाम का मतलब क्या है? यहोवा ने अपने लोगों के लिए क्या किया जो दिखाता है कि वह अपने नाम पर खरा उतरता है?
11 यहोवा के नाम का मतलब है, “जो बनने का कारण होता है।” इसका मतलब है कि परमेश्वर अपने वादे पूरे करने के लिए लगातार काम करता रहता है। इसका एक बेहतरीन उदाहरण है, जिस तरह से यहोवा ने अब्राहम के वंशजों, यानी इसराएल राष्ट्र से किया अपना वादा निभाया। जब वे मिस्र की गुलामी में थे तब परमेश्वर ने वादा किया कि वह उन्हें छुड़ाएगा और वादा किए गए देश में ले जाएगा। देखा जाए तो यह नामुमकिन लग रहा था। लेकिन अपना वादा पूरा करने तक परमेश्वर लगातार काम करता रहा। इस तरह, यहोवा अपने नाम पर खरा उतरा।
12 अपनी प्रार्थना में लेवियों ने यहोवा के उन कामों के बारे में बताया, जो उसने अपने लोगों के लिए किए थे: “फिर तू ने मिस्र में हमारे पुरखाओं के दुःख पर दृष्टि की; और लाल समुद्र के तट पर उनकी दोहाई सुनी। और फ़िरौन और उसके सब कर्मचारी वरन उसके देश के सब लोगों को दण्ड देने के लिये चिन्ह और चमत्कार दिखाए; क्योंकि तू जानता था कि वे उन से अभिमान करते हैं; और तू ने अपना ऐसा बड़ा नाम किया, जैसा आज तक वर्तमान है। और तू ने उनके आगे समुद्र को ऐसा दो भाग किया, कि वे समुद्र के बीच स्थल ही स्थल चलकर पार हो गए; और जो उनके पीछे पड़े थे, उनको तू ने गहिरे स्थानों में ऐसा डाल दिया, जैसा पत्थर महाजलराशि में डाला जाए।” इसके बाद लेवियों ने कहा कि यहोवा ने अपने लोगों को वादा-ए-मुल्क पर कब्ज़ा करने में मदद दी: “तू ने उनके द्वारा देश के निवासी कनानियों को दबाया . . . और उन्हों ने गढ़वाले नगर और उपजाऊ भूमि ले ली, और सब भांति की अच्छी वस्तुओं से भरे हुए घरों के, और खुदे हुए हौदों के, और दाख और जलपाई बारियों के, और खाने के फलवाले बहुत से वृक्षों के अधिकारी हो गए; वे उसे खा खाकर तृप्त हुए, और हृष्ट-पुष्ट हो गए, और तेरी बड़ी भलाई के कारण सुख भोगते रहे।”—नहे. 9:9-11, 24, 25.
13. इसराएलियों के मिस्र छोड़ने के तुरंत बाद, यहोवा ने उनके लिए क्या किया? लेकिन लोगों ने आगे चलकर क्या किया?
13 यहोवा ने अपना वादा पूरा करने के लिए और भी कई कदम उठाए। उदाहरण के लिए, इसराएलियों के मिस्र छोड़ने के तुरंत बाद, यहोवा ने उन्हें कुछ कानून दिए और उन्हें सिखाया कि कैसे उपासना करनी चाहिए। लेवियों ने प्रार्थना में कहा: “तू ने सीनै पर्वत पर उतरकर आकाश में से उनके साथ बातें की, और उनको सीधे नियम, सच्ची व्यवस्था, और अच्छी विधियां, और आज्ञाएं दीं।” (नहे. 9:13) यहोवा ने इसराएलियों को अपने लोगों के तौर पर चुना था और वह उन्हें वादा किए गए देश में ले जानेवाला था। इसलिए यहोवा ने उन्हें सिखाया कि वे उसके पवित्र नाम को धारण करने लायक काम करें। लेकिन इसराएलियों ने यहोवा की आज्ञा ज़्यादा दिनों तक नहीं मानी।—नहेमायाह 9:16-18 पढ़िए।
अनुशासन की ज़रूरत
14, 15. (क) यहोवा ने इसराएलियों पर कैसे दया दिखायी? (ख) परमेश्वर जिस तरह उनके साथ पेश आया, उससे हम क्या सीखते हैं?
14 लेवियों ने अपनी प्रार्थना में दो पापों का खास तौर से ज़िक्र किया। ये पाप इसराएलियों ने तब किए थे जब उन्होंने सीनै पर्वत के पास परमेश्वर का कानून मानने का वादा बस किया ही था। उनके इन पापों के लिए उन्हें मौत की सज़ा मिलनी चाहिए थी। लेकिन फिर भी यहोवा ने उन पर दया की और उनकी ज़रूरतें पूरी करता रहा। प्रार्थना में लेवियों ने यहोवा की बड़ाई की: “चालीस वर्ष तक तू उनका ऐसा पालन पोषण करता रहा, कि उनको कुछ घटी न हुई; न तो उनके वस्त्र पुराने हुए और न उनके पांव में सूजन हुई।” (नहे. 9:19, 21) आज यहोवा हमारी भी ज़रूरतें पूरी कर रहा है, ताकि हम उसकी सेवा वफादारी से कर सकें। हम यहोवा पर अपना विश्वास कभी नहीं खोना चाहते और न ही उसकी आज्ञाएँ तोड़ना चाहते हैं, जैसा हज़ारों इसराएलियों ने किया था जो विराने में ही मर गए। उनकी बुरी मिसाल हमारे लिए आज एक चेतावनी है।—1 कुरिं. 10:1-11.
15 दुख की बात है कि वादा किए गए देश में दाखिल होने के बाद, इसराएली यहोवा के वफादार नहीं रहे। वे कनानी देवी-देवताओं की उपासना करने लगे। उनकी उपासना में अनैतिक काम करना, यहाँ तक कि अपने बच्चों की बलि चढ़ाना भी शामिल था। इसलिए यहोवा ने पड़ोसी राष्ट्रों को इसराएलियों के साथ बुरा सुलूक करने दिया। लेकिन जब इसराएलियों ने पश्चाताप किया, तो यहोवा ने उन पर दया की, उन्हें माफ कर दिया और उन्हें दुश्मनों के हाथों मरने से बचाया। ऐसा “बार बार” होता रहा। (नहेमायाह 9:26-28, 31 पढ़िए।) लेवियों ने कबूल किया: “तू तो बहुत वर्ष तक उनकी सहता रहा, और अपने आत्मा से नबियों के द्वारा उन्हें चिताता रहा, परन्तु वे कान नहीं लगाते थे, इसलिये तू ने उन्हें देश देश के लोगों के हाथ में कर दिया।”—नहे. 9:30.
16, 17. (क) बंधुआई से लौटने के बाद, इसराएलियों की हालत कैसे उनके उन पूर्वजों से अलग थी, जो वादा किए गए देश में रहते थे? (ख) इसराएलियों ने क्या कबूल किया? और उन्होंने क्या करने का वादा किया?
16 बैबिलोन की बंधुआई से लौटने के बाद, इसराएलियों ने दोबारा यहोवा की आज्ञा तोड़नी शुरू कर दी। पर इस बार क्या फर्क था? लेवियों ने अपनी प्रार्थना में बताया: “देख, हम आज कल दास है; जो देश तू ने हमारे पितरों को दिया था कि उसकी उत्तम उपज खाएं, इसी में हम दास हैं। इसकी उपज से उन राजाओं को जिन्हें तू ने हमारे पापों के कारण हमारे ऊपर ठहराया है, बहुत धन मिलता है; और . . . इसलिये हम बड़े संकट में पड़े हैं।” जी हाँ, जो देश यहोवा ने इसराएलियों को दिया था, उसी देश में वे दास बन गए थे, जबकि उनके पूर्वजों के साथ ऐसा नहीं था।—नहे. 9:36, 37.
17 क्या लेवी यह कह रहे थे कि परमेश्वर ऐसा करके अपने लोगों के साथ नाइंसाफी कर रहा था? बेशक नहीं। बल्कि उन्होंने कबूल किया: “तौभी जो कुछ हम पर बीता है उसके विषय तू तो धर्मी है; तू ने तो सच्चाई से काम किया है, परन्तु हम ने दुष्टता की है।” (नहे. 9:33) फिर उन्होंने बिना किसी स्वार्थ के की गयी अपनी यह प्रार्थना इस गंभीर वादे के साथ खत्म की कि अब से उनका राष्ट्र परमेश्वर का कानून ज़रूर मानेगा। (नहेमायाह 9:38 पढ़िए; 10:29) उन्होंने अपना यह वादा एक दस्तावेज़ पर लिखा, जिस पर 84 यहूदी अगुवों ने अपनी मुहर लगायी।—नहे. 10:1-27.
18, 19. (क) अगर हम परमेश्वर की नयी दुनिया में दाखिल होना चाहते हैं, तो हमें किस चीज़ की ज़रूरत है? (ख) हमें किस बात के लिए लगातार प्रार्थना करनी चाहिए? और क्यों?
18 अगर हम यहोवा की धर्मी नयी दुनिया में रहने लायक बनना चाहते हैं, तो कभी-कभी हमें यहोवा से ताड़ना कबूल करने की भी ज़रूरत है। प्रेषित पौलुस ने पूछा: “ऐसा कौन-सा बेटा है जिसे पिता अनुशासन नहीं देता?” (इब्रा. 12:7) अगर हम यहोवा से मिलनेवाला अनुशासन कबूल करें और वफादारी से उसकी सेवा में लगे रहें, तो हम दिखाएँगे कि हम उसे खुद को प्रशिक्षित करने दे रहे हैं। और अगर हम कोई गंभीर पाप करते हैं, तो हम यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमें माफ कर देगा, बशर्ते हम सच्चा पश्चाताप करें और नम्र होकर उसकी तरफ से मिलनेवाला अनुशासन कबूल करें।
19 जल्द ही, यहोवा उन कामों से भी ज़्यादा शानदार काम करेगा, जो उसने इसराएलियों को मिस्र की गुलामी से छुड़ाते वक्त किए थे। तब सभी जान जाएँगे कि वह कितना महान परमेश्वर है। (यहे. 38:23) ठीक जैसे परमेश्वर ने पक्का किया था कि वफादार इसराएली वादा किए गए देश में दाखिल हों, उसी तरह हम पक्का यकीन रख सकते हैं कि जब वह अपना नाम पवित्र करेगा, तो वह अपने सभी वफादार उपासकों को उस नए धर्मी संसार में ज़रूर पहुँचाएगा। (2 पत. 3:13) इसलिए आइए हम प्रार्थना करते रहें कि परमेश्वर का महान नाम पवित्र किया जाए। अगले लेख में हम एक और प्रार्थना के बारे में सीखेंगे, जो हमें ऐसे काम करने में मदद दे सकती है जिससे हम परमेश्वर की आशीष आज और हमेशा पाते रहें।