“अन्त” के बारे में पहले से सोचिए
“अन्त” के बारे में पहले से सोचिए
ज़िंदगी के सफर में हमें कई चुनाव करने पड़ते हैं। अकलमंदी इसी में है कि कोई भी चुनाव करने से पहले, हम यह जानने की कोशिश करें कि हमारे चुनाव का अंजाम क्या होगा। कुछ लोगों ने अपनी ज़िंदगी में ऐसे फैसले किए हैं कि बाद में उन्हें पछतावे के सिवाय कुछ हाथ नहीं लगा। आपको भी अपने किसी फैसले के बारे में शायद यह कहना पड़ा हो, ‘काश! मुझे इसका अंजाम पहले से मालूम होता, तो मैं यह फैसला कभी न करता।’
एक मुसाफिर जो अकसर सफर पर निकलता है, वह हमेशा यह जानने की कोशिश करता है कि फलाँ रास्ता उसे कहाँ ले जाएगा। वह शायद नक्शा देखे या ऐसे लोगों से पूछ-ताछ करे, जिन्हें उस रास्ते की पूरी जानकारी हो। रास्ते पर लगे साइन-बोर्ड पर भी वह गौर करेगा। लेकिन जब ज़िंदगी के सफर की बात आती है, तब आप यह कैसे तय कर सकते हैं कि कौन-सा रास्ता, सबसे बेहतरीन होगा? एक बार परमेश्वर ने अपने एक सेवक मूसा के ज़रिए इस्राएलियों के बारे में कहा: “भला होता कि ये बुद्धिमान होते, कि इसको समझ लेते, और अपने अन्त का विचार करते!”—व्यवस्थाविवरण 32:29.
सबसे बेहतरीन सलाह
यह सच है कि ज़िंदगी के सफर में हमारे सामने कई रास्ते खुले हैं। लेकिन उनकी मंज़िल या “अन्त” क्या होगा, इसके बारे में हमें ज़्यादा परेशान होने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि परमेश्वर को हर रास्ते की मंज़िल का पता है। इसलिए वह हमें सबसे अच्छी सलाह दे सकता है कि हमारे लिए कौन-सा रास्ता बेहतरीन होगा। इसके अलावा, इंसान ने अपने जीवन में जो भी रास्ते चुने हैं, यहोवा उन सब रास्तों और उनके अंजामों से अच्छी तरह वाकिफ है। बाइबल कहती है: “मनुष्य के मार्ग यहोवा की दृष्टि से छिपे नहीं हैं, और वह उसके सब मार्गों पर ध्यान करता है।”—नीतिवचन 5:21.
यहोवा उन सबकी परवाह करता है जो उससे प्यार करते हैं। भजन 32:8; 143:8.
अपने वचन बाइबल के ज़रिए वह उन्हें सबसे अच्छे रास्ते के बारे में बताता है। वह कहता है: “मैं तुझे बुद्धि दूंगा, और जिस मार्ग में तुझे चलना होगा उस में तेरी अगुवाई करूंगा; मैं तुझ पर कृपादृष्टि रखूंगा और सम्मति दिया करूंगा।” इसलिए किसी भी रास्ते पर कदम रखने से पहले, बुद्धिमानी इसी में है कि हम यहोवा से सलाह लें। प्राचीन इस्राएल के राजा दाऊद ने ऐसा ही किया था। उसने परमेश्वर से प्रार्थना की: “जिस मार्ग से मुझे चलना है, वह मुझ को बता दे।”—जिस मुसाफिर को रास्ते की अच्छी जानकारी होती है अगर वह आपको राह दिखाए तो आपको यकीन हो जाता है कि आप सही-सलामत अपनी मंज़िल तक पहुँच जाएँगे। और फिर आप किसी बात की चिंता नहीं करते। दाऊद ने यहोवा से मार्गदर्शन माँगा और उसकी दिखायी राह पर चला। इसका नतीजा यह हुआ कि उसे मन की शांति मिली और अपनी यह भावना उसने भजन 23 में बड़ी खूबसूरती से ज़ाहिर की। उसने लिखा: “यहोवा मेरा चरवाहा है, मुझे कुछ घटी न होगी। वह मुझे हरी हरी चराइयों में बैठाता है; वह मुझे सुखदाई जल के झरने के पास ले चलता है; वह मेरे जी में जी ले आता है। धर्म के मार्गों में वह अपने नाम के निमित्त मेरी अगुवाई करता है। चाहे मैं घोर अन्धकार से भरी हुई तराई में होकर चलूं, तौभी हानि से न डरूंगा।”—भजन 23:1-4.
उनका अंजाम क्या होगा?
जीवन के सफर का एक राही आसाप या उसका कोई वशंज जो एक भजनहार था, उसने कबूल किया कि सही रास्ते से उसके ‘पैर लड़खड़ाने पर थे।’ (NHT) आखिर हुआ क्या था? उसने बेईमानों और मार-काट करनेवालों को शानो-शौकत से और ‘दुष्टों को कुशल’ से जीते देखा, इसलिए वह मन-ही-मन कुढ़ने लगा था। उसे ऐसा लगता था कि वे “सदा आराम से” (NHT) रहते हैं। इससे भी बुरी बात यह थी कि भजनहार को लगने लगा था कि सच्चाई का रास्ता अपनाकर उसने बड़ी बेवकूफी की है।—भजन 73:2, 3, 6, 12, 13.
इसके बाद भजनहार यहोवा के मंदिर में जाकर प्रार्थना करने लगा और दुष्टों के अंजाम के बारे में सोचने लगा। उसने कहा, मैं उन ‘लोगों का परिणाम’ जानना चाहता हूँ। जिनसे वह जलता था, वह उनके बारे में गहराई से सोचने लगा कि उनका भविष्य क्या होगा? फिर उसे एहसास हुआ कि ऐसे लोग “फिसलनेवाले स्थानों में” खड़े हैं, और वे ‘गिरकर सत्यानाश’ हो जाएँगे। लेकिन जो रास्ता भजनहार ने अपनाया था उसके बारे में क्या कहा जा सकता है? उसने माना: “तब [यहोवा] मेरी महिमा करके मुझ को अपने पास रखेगा।”—भजन 73:17-19, 24.
जो लोग गलत तरीके से धन-दौलत हासिल करते हैं, जब भजनहार ने ऐसे लोगों के अंजाम के बारे में सोचा, तब उसके मन में शक की कोई गुंजाइश नहीं रह गयी कि वह सही रास्ते पर है। आखिरकार उसने कहा: “परमेश्वर के समीप रहना, यही मेरे लिये भला है।” जी हाँ, परमेश्वर यहोवा के करीब रहने से हमारा भला ही होगा।—भजन 73:28.
“जिस पथ पर चलते हो, उसे ध्यान से देखो”
हम सबके सामने आज कई रास्ते खुले हैं। शायद आपके सामने कोई ऐसा प्रस्ताव आए जो आपको माला-माल कर दे। हो सकता है वह कोई बिज़नेस कॉन्ट्रेक्ट हो, नौकरी में तरक्की का प्रस्ताव हो या किसी के व्यापार में हिस्सेदार बनने की पेशकश। यह सच है कि किसी भी नए काम में हाथ डालने का कुछ-ना-कुछ खतरा तो रहता ही है। लेकिन फिर भी क्या आपको यह नीतिवचन 4:26, बुल्के बाइबिल।
सही नहीं लगता कि कोई भी चुनाव करने से पहले उसके “अन्त” या अंजाम के बारे में सोच लें? आपके चुनाव के क्या नतीजे हो सकते हैं? कहीं आपको अपने घर-परिवार से दूर तो नहीं रहना पड़ेगा, जिसकी वजह से आपके जीवन-साथी या आपको तनाव से गुज़रना पड़े? कारोबार में, होटलों में या किसी और जगह, जिन लोगों के साथ आपका उठना-बैठना होगा, कहीं उनकी सोहबत आपके लिए बुरी तो नहीं होगी। जब आप इन सारी बातों पर गंभीरता से सोच-विचार करेंगे तभी आप बुद्धिमानी भरा फैसला कर सकेंगे। राजा सुलैमान की इस सलाह पर गौर कीजिए: “जिस पथ पर चलते हो, उसे ध्यान से देखो।”—हम सभी के लिए राजा सुलैमान की सलाह को ध्यान में रखना अच्छा होगा। खासकर नौजवानों के लिए तो यह बहुत ज़रूरी है। एक बार एक नौजवान किराए पर एक वीडियो लाया जिसके बारे में वह जानता था कि उसमें बहुत-से कामुक दृश्य हैं। वह बताता है कि उस वीडियो को देखने के बाद वह इतना उत्तेजित हो गया कि वह सीधे एक वेश्या की चौखट पर पहुँच गया, जो उसके घर के पास ही रहती थी। उसका अंजाम क्या हुआ? उसे अपने किए पर बड़ा पछतावा हुआ, उसका विवेक उसे धिक्कारने लगा और उसे बीमारी का डर सताने लगा। जो उसने किया बिलकुल वही बात बाइबल में भी बतायी गयी है: “वह तुरन्त उसके पीछे हो लिया, जैसे बैल कसाई-खाने को” जाता है। काश, उसने नीतिवचन 7:22, 23.
अपने इस “अन्त” के बारे में पहले ही सोचा होता!—साइन-बोर्ड पर भरोसा रखिए
बहुत-से लोग इस बात से सहमत होंगे कि साइन-बोर्ड को नज़रअंदाज़ करना मूर्खता है। मगर अफसोस कि जब ज़िंदगी के सफर की बात आती है, तो कई लोग यह गलती कर बैठते हैं। खासकर तब, जब वह रास्ता उनके मन-मुताबिक नहीं होता। यिर्मयाह के दिनों के कुछ इस्राएलियों की बात लीजिए। इस्राएली एक ऐसे मोड़ पर थे, जहाँ उन्हें एक अहम फैसला करना था। परमेश्वर यहोवा ने उन्हें सलाह दी: “पूछो कि प्राचीनकाल का अच्छा मार्ग कौन सा है, उसी में चलो।” मगर इस्राएलियों ने ढीठ होकर कहा कि वे उस मार्ग पर ‘नहीं चलेंगे।’ (यिर्मयाह 6:16) उनके इस ढीठ रवैए का “अन्त” क्या निकला? सामान्य युग पूर्व 607 में बाबुलियों ने आकर उनके शहर यरूशलेम का पूरी तरह से विनाश कर दिया और उन्हें गुलाम बनाकर बाबुल ले गए।
उसी तरह अगर हम साइन-बोर्ड यानी परमेश्वर की दी गयी सलाह को नज़रअंदाज़ करें, तो हमारा कभी भला नहीं होगा। बाइबल हमसे आग्रह करती है: “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।”—नीतिवचन 3:5, 6.
कुछ साइन-बोर्ड पर लिखा होता है, “प्रवेश निषेध” यानी इस रास्ते से जाना मना है। परमेश्वर ने भी हमें कुछ ऐसी ही सलाह दी है। मसलन बाइबल कहती है: “दुष्टों की बाट में पांव न धरना, और न बुरे लोगों के मार्ग पर चलना।” (नीतिवचन 4:14) और नीतिवचन 5:3, 4 में ऐसे ही एक रास्ते के बारे में बताया गया है, जिससे जाना मना है: “पराई स्त्री के ओठों से मधु टपकता है, और उसकी बातें तेल से भी अधिक चिकनी होती हैं; परन्तु इसका परिणाम नागदौना सा कड़ुवा और दोधारी तलवार सा पैना होता है।” कुछ लोगों को लगता है कि शारीरिक संबंध रखना बहुत ही मज़ेदार होगा, फिर चाहे वह किसी वेश्या के साथ हो या किसी और के साथ। मगर इस मामले में परमेश्वर ने “प्रवेश निषेध” का कानून बनाया है और उसे नज़रअंदाज़ करने का अंजाम भयानक हो सकता है।
बदचलनी के रास्ते पर कदम रखने से पहले ही अपने आप से पूछिए, ‘यह मुझे कहाँ ले जाएगा?’ अगर हम कुछ पल रुककर इसके “अन्त” के बारे में सोचें, तो यही हमें उस रास्ते पर जाने से रोक लेगा, जिसका अंजाम भयानक हो सकता है। जो परमेश्वर की चेतावनियों को नज़रअंदाज़ करते हैं, वे अपने रास्ते में खुद ही काँटे बो लेते हैं। उन्हें एड्स और दूसरी लैंगिक बीमारियाँ, अनचाहा गर्भ, गर्भपात, टूटे रिश्ते, या कचोटता ज़मीर ही हाथ लगता है। जो बदचलनी की राह पर चलते हैं उनके अंजाम के बारे में प्रेरित पौलुस ने साफ बताया कि वे ‘परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे।’—1 कुरिन्थियों 6:9, 10.
“मार्ग यही है”
कभी-कभी हम इस दुविधा में होते हैं कि हमने जो रास्ता चुना है, वह सही है या नहीं। ऐसे में हम परमेश्वर के कितने शुक्रगुज़ार हैं कि हमारी परवाह करते हुए उसने हमें साफ-साफ बताया है कि हमें किस राह पर चलना चाहिए! वह कहता है: “मार्ग यही है, इसी पर चलो।” (यशायाह 30:21) जो मार्ग यहोवा दिखा रहा है, उसका अंत क्या है? हालाँकि मार्ग बहुत सँकरा और मुश्किलों भरा है, मगर यीशु ने कहा कि वही मार्ग हमें अनंत जीवन की ओर ले जाता है।—मत्ती 7:14.
ज़िंदगी के सफर में आप जिस रास्ते पर चल रहे हैं, घड़ी भर रुककर उसके बारे में सोचिए। क्या यह रास्ता सही है? यह आखिर में आपको कहाँ ले जाएगा? प्रार्थना में यहोवा से मार्गदर्शन माँगिए। ‘नक्शा’ यानी बाइबल की सलाह पर गौर कीजिए। शायद आप ऐसे तजुर्बेकार मुसाफिर की भी सलाह लेना चाहें, जो सालों से परमेश्वर की राह पर चलता आया है। अगर आप देखते हैं कि आप गलत रास्ते पर हैं, तो फौरन रास्ता बदल लीजिए।
जब एक मुसाफिर ऐसा साइन-बोर्ड देखता है जो उसे यकीन दिलाता है कि वह सही रास्ते पर है, तो इससे उसे बड़ा हौसला मिलता है। उसी तरह ज़िंदगी के सफर में जब आप गौर करते हैं कि आप सच्चाई के रास्ते पर चल रहे हैं, तो बेधड़क आगे बढ़ते रहिए। सफर का असली मज़ा आपको अपनी मंज़िल पर पहुँचकर मिलेगा जो कि बहुत ही करीब है।—2 पतरस 3:13.
हर रास्ते की एक मंज़िल होती है। आपके रास्ते की मंज़िल क्या है? अपनी मंज़िल पर पहुँचने के बाद अगर आपको एहसास होता है कि “काश! मैंने यह रास्ता न चुना होता” तो बहुत देर हो चुकी होगी। इसलिए आप जिस रास्ते पर चल रहे हैं, उस पर अगला कदम बढ़ाने से पहले खुद से पूछिए, ‘इस रास्ते का “अन्त” क्या होगा?’ (w08 9/1)
[पेज 30 पर बक्स/तसवीरें]
“अन्त” क्या होगा?
आज दुनिया में बहुत-सी ऐसी बातें हैं जिनका बड़ा चलन है और जिन्हें आज़माने के लिए अकसर जवानों पर दबाव डाला जाता या लुभाया जाता है। गौर कीजिए शायद आपके सामने भी ऐसे हालात आएँ जब
◼ कोई आपको सिगरेट पीने के लिए उकसाए।
◼ आपका भला चाहनेवाला टीचर आप पर विश्वविद्यालय में ऊँची शिक्षा पाने के लिए ज़ोर डाले।
◼ आपको एक ऐसी पार्टी में बुलाया जाए, जहाँ शराब और ड्रग्स बड़े पैमाने पर मौजूद हो।
◼ कोई आपसे कहे, “ऐसा करो, इंटरनेट पर अपने बारे में जानकारी दे दो।”
◼ एक दोस्त आपको एक ऐसी फिल्म देखने के लिए बुलाए, जिसमें हिंसा या अश्लील दृश्य हों।
अगर कभी आपके सामने ऐसे हालात आ जाएँ, तो आप क्या करेंगे? क्या आप सीधे हाँ कह देंगे या कोई भी कदम उठाने से पहले उसके “अन्त” के बारे में गहराई से सोचेंगे? अक्लमंदी इसी में है कि आप अपने-आप से पहले यह पूछें: “क्या हो सकता है कि कोई अपनी छाती पर आग रख ले; और उसके कपड़े न जलें? क्या हो सकता है कि कोई अंगारे पर चले, और उसके पांव न झुलसें?”—नीतिवचन 6:27, 28.