पहले पेज का विषय | हमें परमेश्वर की ज़रूरत क्यों है?
यह सवाल क्यों?
“क्या आप परमेश्वर के बिना खुश हैं? बहुत-से हैं।” ये शब्द एक विज्ञापन बोर्ड पर लिखे थे, जिसे लगवाने का खर्च एक नास्तिक समूह ने उठाया था। उन्हें लगता है कि उन्हें परमेश्वर की कोई ज़रूरत नहीं।
वहीं दूसरी तरफ, ऐसे कई लोग हैं जो दावा करते हैं कि उन्हें परमेश्वर पर विश्वास है, लेकिन वे अपने फैसले इस तरह लेते हैं, मानो परमेश्वर वजूद में है ही नहीं। सोलवेटोर फीज़ीकैल्ला, जो कैथोलिक चर्च के आर्चबिशप (चर्च के एक बड़े पादरी) हैं, वे अपने चर्च के सदस्यों के बारे में कहते हैं: “आज शायद हमें देखकर कोई नहीं कहेगा कि हम ईसाई हैं, क्योंकि हमारे जीने का तरीका बिलकुल उन लोगों की तरह है, जो परमेश्वर के बारे में ज़रा भी नहीं सोचते।”
कुछ लोग अपनी ज़िंदगी में इतने व्यस्त हैं कि उन्हें परमेश्वर के बारे में सोचने का वक्त ही नहीं मिलता। उन्हें लगता है कि परमेश्वर उनसे इतना दूर है कि शायद ही उनके जीवन में उसका कोई असर हो। ऐसे लोग परमेश्वर को सिर्फ तभी याद करते हैं, जब वे किसी मुसीबत में होते हैं या उन्हें किसी चीज़ की ज़रूरत होती है। यह ऐसा है, मानो परमेश्वर उनका गुलाम है और उनकी कही हर बात मानता है।
कुछ लोगों को लगता है कि उनकी धार्मिक शिक्षाएँ या चर्च में सिखायी जानेवाली बातें कोई मायने नहीं रखतीं, क्योंकि उन बातों को लागू करने का कोई फायदा नहीं। मिसाल के लिए, जर्मनी में कैथोलिक धर्म के 76 प्रतिशत लोग मानते हैं कि शादी से पहले आदमी और औरत का एक साथ रहना कोई गलत बात नहीं है। जबकि यह सोच चर्च और बाइबल की शिक्षाओं के खिलाफ है। (1 कुरिंथियों 6:18; इब्रानियों 13:4) बेशक, सिर्फ कैथोलिक धर्मवाले ही नहीं, बल्कि दूसरे धर्म के लोगों का भी यही मानना है कि वे जो विश्वास करते हैं, उसके मुताबिक वे नहीं चलते। इतना ही नहीं, अलग-अलग धर्म के धर्म-गुरू भी इस बात पर अफसोस ज़ाहिर करते हैं कि उनके धर्म के लोग “सही मायनों में नास्तिकों” जैसा व्यवहार दिखाते हैं।
ये सभी मिसालें एक ही सवाल की तरफ हमारा ध्यान खींचती हैं: क्या वाकई हमें परमेश्वर की ज़रूरत है? यह सवाल या मुद्दा कोई नया नहीं है। बाइबल की शुरूआती किताबों में भी यह सवाल उठाया गया था। इस सवाल का जवाब जानने के लिए, आइए हम इससे जुड़े कुछ और मुद्दों पर ध्यान दें, जो बाइबल की उत्पत्ति की किताब में दर्ज़ हैं। (w13-E 12/01)