उत्पत्ति 18:1-33
18 बाद में यहोवा+ अब्राहम के सामने प्रकट हुआ। भरी दोपहरी का वक्त था और कड़ी धूप थी। अब्राहम, ममरे में बड़े-बड़े पेड़ों के बीच+ अपने तंबू के द्वार पर बैठा था।
2 जब उसने आँख उठाकर देखा तो उसे तीन आदमी नज़र आए जो उसके तंबू से कुछ दूरी पर खड़े थे।+ जैसे ही अब्राहम ने उन्हें देखा, वह उनसे मिलने के लिए तंबू के द्वार से दौड़कर गया और उसने ज़मीन पर गिरकर प्रणाम किया।
3 फिर उसने कहा, “हे यहोवा, अगर तेरी कृपा मुझ पर हो तो अपने दास के तंबू में आए बगैर यहाँ से मत जाना।
4 मैं थोड़ा पानी लाता हूँ ताकि तुम्हारे पैर धोए जाएँ।+ फिर इस पेड़ के नीचे कुछ देर आराम कर लेना।
5 देखो, तुम अपने दास के यहाँ मेहमान हो, मैं तुम्हें खाना खाए बगैर नहीं जाने दूँगा। मैं जाकर तुम्हारे लिए थोड़ी रोटियाँ लाता हूँ ताकि तुम खाकर तरो-ताज़ा हो जाओ।”* उन्होंने कहा, “ठीक है, जैसी तेरी मरज़ी।”
6 तब अब्राहम भागकर तंबू में सारा के पास गया और उससे कहा, “जल्दी से तीन पैमाना* मैदा ले और उसे गूँधकर रोटियाँ बना।”
7 इसके बाद, अब्राहम दौड़कर अपने गाय-बैल के झुंड के पास गया और उसने एक अच्छा-सा मुलायम बछड़ा लाकर अपने सेवक को दिया। वह फौरन उसे पकाने में लग गया।
8 फिर अब्राहम ने मक्खन, दूध और गोश्त लिया और अपने मेहमानों के सामने खाना परोसा। जब वे पेड़ के नीचे बैठे खा रहे थे, तो अब्राहम उनके पास ही खड़ा रहा।+
9 उन्होंने अब्राहम से पूछा, “तेरी पत्नी सारा+ कहाँ है?” उसने कहा, “यहीं तंबू में है।”
10 तब उनमें से एक ने कहा, “मैं अगले साल इसी समय तेरे पास फिर आऊँगा और देख, तेरी पत्नी सारा के एक बेटा होगा!”+ सारा उस आदमी के पीछे तंबू के द्वार पर खड़ी सब सुन रही थी।
11 अब्राहम और सारा, दोनों की उम्र ढल चुकी थी+ और सारा की बच्चे पैदा करने की उम्र बीत चुकी थी।*+
12 इसलिए सारा मन-ही-मन हँस पड़ी और कहने लगी, “मैं तो बूढ़ी हो गयी हूँ, मेरा मालिक भी बूढ़ा हो गया है। क्या इस उम्र में वाकई मुझे औलाद का सुख मिलेगा?”+
13 तब यहोवा ने अब्राहम से कहा, “सारा क्यों हँसी? उसने यह क्यों कहा, ‘मैं तो इतनी बूढ़ी हूँ, मेरे बच्चा कैसे हो सकता है?’
14 क्या यहोवा के लिए कुछ भी नामुमकिन है?+ मैं अगले साल इसी समय तेरे पास फिर आऊँगा और सारा के एक बेटा होगा।”
15 मगर सारा डर के मारे बोली, “नहीं, मैं नहीं हँसी!” परमेश्वर ने कहा, “नहीं, तू हँसी थी।”
16 फिर वे आदमी जाने के लिए उठे और उन्होंने नीचे सदोम की तरफ देखा।+ अब्राहम उन्हें विदा करने के लिए उनके साथ-साथ गया।
17 यहोवा ने कहा, “मैं जो करने जा रहा हूँ वह अब्राहम को न बताऊँ, यह नहीं हो सकता।+
18 क्योंकि अब्राहम एक बड़ी और शक्तिशाली जाति का पिता बनेगा और धरती की सभी जातियाँ उसके ज़रिए आशीष पाएँगी।*+
19 मैं अब्राहम को अच्छी तरह जानता हूँ। मुझे पूरा यकीन है कि वह अपने बेटों और वंशजों को आज्ञा देगा कि वे वही करें जो सही और न्याय के मुताबिक है और इस तरह यहोवा की राह पर चलते रहें।+ तब मैं यहोवा, अब्राहम के बारे में किया अपना वादा पूरा करूँगा।”
20 फिर यहोवा ने कहा, “सदोम और अमोरा का पाप हद से गुज़र गया है,+ उनके बारे में शिकायत बढ़ती जा रही है।+
21 मैं नीचे जाकर उन शहरों का मुआयना करूँगा और देखूँगा कि मैंने जो सुना है क्या वह सही है, क्या सचमुच वहाँ की हालत इतनी खराब है। मैं इस बारे में ज़रूर जानना चाहूँगा।”+
22 इसके बाद वे आदमी वहाँ से सदोम की तरफ चले गए। मगर यहोवा+ अब्राहम के संग रह गया।
23 तब अब्राहम ने परमेश्वर के पास जाकर उससे पूछा, “क्या तू दुष्टों के साथ-साथ नेक लोगों को भी मिटा देगा?+
24 मान लो उस शहर में 50 नेक लोग हैं। क्या तब भी तू उसका नाश कर देगा? क्या तू उन 50 की खातिर उस जगह को नहीं बख्शेगा?
25 तू दुष्ट के साथ-साथ नेक जन को मार डालने की कभी सोच भी नहीं सकता।+ तू दोनों को एक ही सिला दे, यह कभी नहीं हो सकता।+ क्या सारी दुनिया का न्याय करनेवाला कभी अन्याय कर सकता है?”+
26 तब यहोवा ने कहा, “अगर मुझे सदोम में 50 लोग भी नेक मिले, तो मैं उनकी खातिर पूरे शहर को छोड़ दूँगा।”
27 मगर अब्राहम ने फिर कहा, “मैं तो बस मिट्टी और राख हूँ, फिर भी मैं यहोवा से एक और बार बोलने की गुस्ताखी कर रहा हूँ।
28 मान लो शहर में 50 नहीं, 45 नेक लोग हैं, तो क्या तू पाँच के कम होने से पूरा शहर नाश कर देगा?” परमेश्वर ने कहा, “नहीं। अगर मुझे 45 लोग भी नेक मिले, तो मैं उसे नाश नहीं करूँगा।”+
29 मगर अब्राहम ने एक बार फिर कहा, “मान लो वहाँ 40 लोग मिलते हैं।” परमेश्वर ने कहा, “मैं उन 40 की खातिर उस जगह का नाश नहीं करूँगा।”
30 अब्राहम ने फिर कहा, “हे यहोवा, तू मुझ पर भड़क न जाना।+ मैं फिर से पूछना चाहूँगा, मान लो वहाँ बस 30 लोग मिलते हैं।” तब परमेश्वर ने कहा, “अगर मुझे 30 भी मिले तो मैं नाश नहीं करूँगा।”
31 अब्राहम ने फिर कहा, “गुस्ताखी माफ हो यहोवा, अगर वहाँ सिर्फ 20 लोग मिलते हैं।” परमेश्वर ने कहा, “मैं उन 20 की खातिर उसका नाश नहीं करूँगा।”
32 अब्राहम ने कहा, “हे यहोवा, तू मुझ पर भड़क न जाना। बस एक आखिरी बार मुझे पूछने दे, अगर वहाँ सिर्फ दस लोग मिलते हैं।” परमेश्वर ने कहा, “मैं उन दस की खातिर भी उसका नाश नहीं करूँगा।”
33 यहोवा अब्राहम से बातचीत करने के बाद वहाँ से चला गया+ और अब्राहम अपने यहाँ लौट गया।
कई फुटनोट
^ शा., “तुम्हारा दिल मज़बूत हो जाए।”
^ या “माहवारी बंद हो चुकी थी।”
^ इसका यह मतलब हो सकता है कि आशीष पाने के लिए उन्हें भी कुछ कदम उठाने होंगे।