उत्पत्ति 29:1-35
29 इसके बाद याकूब वहाँ से आगे बढ़ा और सफर करते-करते पूरब के देश में पहुँचा।
2 वहाँ उसने मैदान में एक कुआँ देखा जिसके आस-पास भेड़ों के तीन झुंड बैठे थे। इस कुएँ से चरवाहे अकसर अपनी भेड़ों को पानी पिलाया करते थे। कुएँ के मुँह पर एक बड़ा-सा पत्थर रखा हुआ था।
3 जब भेड़ों के सारे झुंड वहाँ इकट्ठा हो जाते, तो चरवाहे कुएँ के मुँह से पत्थर हटाकर उन्हें पानी पिलाते थे। इसके बाद वे फिर से कुएँ का मुँह पत्थर से ढक देते थे।
4 याकूब ने वहाँ जो चरवाहे थे उनसे पूछा, “भाइयो, तुम कहाँ के रहनेवाले हो?” उन्होंने कहा, “हम हारान से हैं।”+
5 फिर उसने पूछा, “क्या तुम नाहोर+ के पोते लाबान+ को जानते हो?” उन्होंने कहा, “हाँ, हम जानते हैं।”
6 उसने कहा, “उसके क्या हाल-चाल हैं?” उन्होंने कहा, “वह बिलकुल ठीक है। वह देख, उसकी बेटी राहेल!+ अपनी भेड़ें लेकर यहीं आ रही है।”
7 फिर याकूब ने उनसे कहा, “तुम अपनी भेड़ों को इतनी जल्दी बाड़े में क्यों ले जा रहे हो? अभी तो दोपहर ही हुई है। तुम इन्हें पानी पिलाकर थोड़ी देर और क्यों नहीं चरा लेते?”
8 चरवाहों ने उससे कहा, “जब तक सारे झुंड नहीं आ जाते तब तक हमें कुएँ से पत्थर हटाकर अपनी भेड़ों को पानी पिलाने की इजाज़त नहीं है। सबके आने के बाद ही पत्थर हटाया जाएगा और हम भेड़ों को पानी दे सकेंगे।”
9 याकूब उन चरवाहों से बात कर ही रहा था कि तभी राहेल अपने पिता की भेड़ें लेकर वहाँ आयी। राहेल भेड़ें चराया करती थी।
10 जब याकूब ने देखा कि उसके मामा लाबान की बेटी राहेल भेड़ें लेकर वहाँ आयी है, तो वह फौरन कुएँ के पास गया। उसने कुएँ के मुँह से पत्थर हटाया और अपने मामा की भेड़ों को पानी पिलाया।
11 फिर याकूब ने राहेल को चूमा और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा।
12 उसने राहेल को बताया कि वह उसके पिता का रिश्तेदार* और रिबका का बेटा है। तब राहेल दौड़कर अपने पिता के पास गयी और उसे यह खबर दी।
13 जैसे ही लाबान+ ने अपने भाँजे याकूब के आने की खबर सुनी, वह दौड़कर उससे मिलने गया। लाबान ने याकूब को गले लगाया और उसे चूमा। फिर वह याकूब को अपने घर ले आया। और याकूब ने लाबान को अपना सारा हाल कह सुनाया।
14 तब लाबान ने उससे कहा, “तू मेरा अपना खून है।”* इसलिए याकूब उसके साथ पूरा एक महीना रहा।
15 फिर लाबान ने याकूब से कहा, “भले ही तू मेरा रिश्तेदार* है,+ फिर भी मैं तुझसे मुफ्त में काम नहीं लेना चाहता। बोल, तू क्या मज़दूरी लेना चाहेगा?”+
16 लाबान की दो बेटियाँ थीं। बड़ी का नाम लिआ था और छोटी का राहेल।+
17 लिआ की आँखों में कोई खास आकर्षण नहीं था, जबकि राहेल इतनी खूबसूरत थी कि उसका रंग-रूप देखते ही बनता था।
18 याकूब को राहेल से प्यार हो गया था, इसलिए उसने लाबान से कहा, “मैं तुझसे तेरी छोटी बेटी राहेल का हाथ माँगता हूँ। मैं उसके लिए तेरे यहाँ सात साल काम करने को तैयार हूँ।”+
19 लाबान ने कहा, “मुझे मंज़ूर है। अपनी बेटी का हाथ किसी गैर को देने से अच्छा है कि मैं तुझे दूँ। तू मेरे साथ ही रह।”
20 याकूब ने राहेल के लिए सात साल काम किया।+ मगर ये सात साल उसके लिए ऐसे बीत गए मानो सात दिन हों क्योंकि वह राहेल से बहुत प्यार करता था।
21 सात साल बीतने पर याकूब ने लाबान से कहा, “मेरी मज़दूरी के दिन पूरे हो गए हैं, अब लड़की मुझे दे दे ताकि मैं उसे अपनी पत्नी बनाऊँ।”*
22 तब लाबान ने शादी की दावत रखी और अपने यहाँ के सभी लोगों को बुलाया।
23 लेकिन उस शाम लाबान अपनी छोटी बेटी राहेल के बजाय बड़ी बेटी लिआ को याकूब के पास ले आया ताकि वह उसे अपनी पत्नी बना ले।
24 लाबान ने अपनी बेटी लिआ की सेवा के लिए उसे अपनी दासी जिल्पा भी दी।+
25 जब सुबह हुई तो याकूब ने देखा कि यह तो लिआ है! उसने जाकर लाबान से कहा, “यह तूने मेरे साथ क्या किया? क्या मैंने तेरे यहाँ राहेल के लिए काम नहीं किया था? फिर तूने मुझे क्यों धोखा दिया?”+
26 लाबान ने कहा, “हमारे यहाँ ऐसा दस्तूर नहीं कि बड़ी से पहले छोटी की शादी करा दें।
27 तू यह हफ्ता इस लड़की के साथ खुशियाँ मना ले। फिर मैं तुझे दूसरी लड़की भी दे दूँगा, मगर उसके लिए तुझे सात साल और काम करना होगा।”+
28 याकूब ने उसकी बात मान ली और एक हफ्ता लिआ के साथ खुशियाँ मनायीं। बाद में लाबान ने उसे अपनी छोटी बेटी राहेल भी दे दी।
29 लाबान ने राहेल की सेवा के लिए उसे अपनी दासी बिल्हा+ भी दी।
30 याकूब ने राहेल के साथ भी संबंध रखे। वह लिआ से ज़्यादा राहेल से प्यार करता था और उसने लाबान के यहाँ सात साल और काम किया।+
31 जब यहोवा ने देखा कि लिआ को उतना प्यार नहीं मिल रहा है जितना राहेल को,* तो उसने लिआ की कोख खोल दी+ जबकि राहेल बाँझ रही।+
32 लिआ गर्भवती हुई और उसने एक बेटे को जन्म दिया। उसने यह कहकर उसका नाम रूबेन*+ रखा कि “यहोवा ने मेरे मन की तड़प देखी है,+ अब मेरा पति ज़रूर मुझसे प्यार करने लगेगा।”
33 लिआ दोबारा गर्भवती हुई और उसका एक बेटा हुआ। उसने कहा, “यहोवा ने मेरी फरियाद सुन ली कि मुझे अपने पति का प्यार नहीं मिल रहा इसलिए उसने मुझे एक और बेटा दिया।” लिआ ने इस लड़के का नाम शिमोन*+ रखा।
34 लिआ एक बार फिर गर्भवती हुई और उसने एक बेटे को जन्म दिया। उसने कहा, “अब मेरे पति को ज़रूर मुझसे लगाव हो जाएगा क्योंकि मैंने उसे तीन-तीन बेटे दिए हैं।” इसलिए उसने तीसरे बेटे का नाम लेवी*+ रखा।
35 लिआ का फिर से गर्भ ठहरा और उसका एक और लड़का हुआ। उसने कहा, “इस बार मैं यहोवा की तारीफ करूँगी।” उसने अपने चौथे बेटे का नाम यहूदा*+ रखा। इसके बाद लिआ के बच्चे होने बंद हो गए।
कई फुटनोट
^ शा., “भाई।”
^ शा., “तू मेरा हाड़-माँस है।”
^ शा., “भाई।”
^ या “ताकि मैं उसके साथ संबंध रखूँ।”
^ शा., “लिआ से नफरत की जा रही है।”
^ मतलब “देख, एक बेटा!”
^ मतलब “सुनना।”
^ मतलब “लगाव; जुड़े रहना।”
^ मतलब “तारीफ हुई; जिसकी तारीफ होती है।”