भजन 36:1-12
यहोवा के सेवक दाविद की रचना। निर्देशक के लिए हिदायत।
36 अपराध, दुष्ट के दिल की गहराई में उससे बोलता है,दुष्ट की आँखों में परमेश्वर का ज़रा भी डर नहीं।+
2 वह अपनी नज़रों में खुद को इतना ऊँचा उठा लेता हैकि अपनी गलती देख नहीं पाता और उससे नफरत नहीं करता।+
3 उसके मुँह से नुकसान पहुँचानेवाली और छल की बातें निकलती हैं,उसमें ज़रा भी अंदरूनी समझ नहीं कि वह भला काम करे।
4 बिस्तर पर लेटे हुए भी वह साज़िशें रचता है।
वह ऐसे रास्ते पर चलने में अड़ जाता है जो सही नहीं है,वह बुराई को नहीं ठुकराता।
5 हे यहोवा, तेरा अटल प्यार आसमान तक पहुँचता है,+तेरी वफादारी बादलों तक पहुँचती है।
6 तेरी नेकी बड़े-बड़े, ऊँचे पहाड़ों* जैसी है,+तेरे न्याय-सिद्धांत विशाल गहरे सागर जैसे हैं।+
हे यहोवा, तू इंसान और जानवर, दोनों को सलामत रखता* है।+
7 हे परमेश्वर, तेरा अटल प्यार क्या ही अनमोल है!+
तेरे पंखों की छाँव तले इंसान पनाह लेते हैं।+
8 वे तेरे भवन की भरपूरी* से जी-भरकर पीते हैं,+तू अपनी अच्छाई की उमड़ती नदी से उन्हें पिलाता है।+
9 तू ही जीवन देनेवाला है,+तेरी रौशनी से हमें रौशनी मिलती है।+
10 जो तुझे जानते हैं उनसे प्यार* करता रह,+सीधे-सच्चे मनवालों के साथ नेकी करता रह।+
11 मगरूर को मौका न दे कि वह पैरों से मुझे रौंद डाले,न ही दुष्ट को अवसर दे कि वह हाथों से मुझे खदेड़ दे।
12 देख, गुनाह करनेवाले गिर गए हैं,उन्हें चित कर दिया गया है, वे उठ नहीं सकते।+