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गीत 142

सब किस्म के लोगों को सच्चाई बताइए

सब किस्म के लोगों को सच्चाई बताइए

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(1 तीमुथियुस 2:4)

  1. आ-ई-ना बन-ना चाह-ते हम याह का,

    सब-को अप-ना-ने को वो है तै-यार।

    फ़र्क क्यों क-रें भ-ला हम लो-गों में,

    जब याह चा-हे स-भी पा लें उद्‌-धार?

    (कोरस)

    ना ही चेह-रा, ना ज-गह,

    दे-खें दिल में क्या भ-रा,

    जब दे-ते सब को सं-देश हम याह का।

    कर-ते पर-वाह उन-की हम,

    सो चाह-ते हैं दिल से हम,

    हर एक इं-साँ बन जा-ए दोस्त याह का।

  2. ना दे-खें हम तो रं-ग-रूप उन-का,

    ना ही दे-खें जा-ति, ना ही पै-सा।

    अ-हम य-ही है दिल उन-का कै-सा—

    याह भी दे-खे अं-दर का ही इं-साँ।

    (कोरस)

    ना ही चेह-रा, ना ज-गह,

    दे-खें दिल में क्या भ-रा,

    जब दे-ते सब को सं-देश हम याह का।

    कर-ते पर-वाह उन-की हम,

    सो चाह-ते हैं दिल से हम,

    हर एक इं-साँ बन जा-ए दोस्त याह का।

  3. इस जग का जो कर दे-ते हैं इं-कार,

    कर-ता य-हो-वा उन-से बे-हद प्यार।

    इन बा-तों का हम कर-ते हैं इज़-हार,

    कि सब सुन लें य-हो-वा की पु-कार।

    (कोरस)

    ना ही चेह-रा, ना ज-गह,

    दे-खें दिल में क्या भ-रा,

    जब दे-ते सब को सं-देश हम याह का।

    कर-ते पर-वाह उन-की हम,

    सो चाह-ते हैं दिल से हम,

    हर एक इं-साँ बन जा-ए दोस्त याह का।