गीत 142
सब किस्म के लोगों को सच्चाई बताइए
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आ-ई-ना बन-ना चाह-ते हम याह का,
सब-को अप-ना-ने को वो है तै-यार।
फ़र्क क्यों क-रें भ-ला हम लो-गों में,
जब याह चा-हे स-भी पा लें उद्-धार?
(कोरस)
ना ही चेह-रा, ना ज-गह,
दे-खें दिल में क्या भ-रा,
जब दे-ते सब को सं-देश हम याह का।
कर-ते पर-वाह उन-की हम,
सो चाह-ते हैं दिल से हम,
हर एक इं-साँ बन जा-ए दोस्त याह का।
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ना दे-खें हम तो रं-ग-रूप उन-का,
ना ही दे-खें जा-ति, ना ही पै-सा।
अ-हम य-ही है दिल उन-का कै-सा—
याह भी दे-खे अं-दर का ही इं-साँ।
(कोरस)
ना ही चेह-रा, ना ज-गह,
दे-खें दिल में क्या भ-रा,
जब दे-ते सब को सं-देश हम याह का।
कर-ते पर-वाह उन-की हम,
सो चाह-ते हैं दिल से हम,
हर एक इं-साँ बन जा-ए दोस्त याह का।
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इस जग का जो कर दे-ते हैं इं-कार,
कर-ता य-हो-वा उन-से बे-हद प्यार।
इन बा-तों का हम कर-ते हैं इज़-हार,
कि सब सुन लें य-हो-वा की पु-कार।
(कोरस)
ना ही चेह-रा, ना ज-गह,
दे-खें दिल में क्या भ-रा,
जब दे-ते सब को सं-देश हम याह का।
कर-ते पर-वाह उन-की हम,
सो चाह-ते हैं दिल से हम,
हर एक इं-साँ बन जा-ए दोस्त याह का।
(1 शमू. 16:7; यूह. 12:32; प्रेषि. 10:34; 1 तीमु. 4:10; तीतु. 2:11 भी देखिए।)